Book Title: Shravak Pratikraman me Shraman Sutra ka Sannivesh
Author(s): Madanlal Katariya
Publisher: Z_Jinavani_002748.pdf

View full book text
Previous | Next

Page 11
________________ 332 | जिनवाणी ||15,17 नवम्बर 20061 सा. की परम्परा, नानक वंश की परम्परा, मेवाड़ी पूज्य अम्बालाल जी म.सा. की परम्परा, उपाध्याय पुष्करमुनि जी म.सा., मरुधरकेशरी मिश्रीमल जी म.सा. की परम्परा, कोटा सम्प्रदाय के खद्दरधारी गणेशलाल जी म.सा. की परम्परा, पूज्य श्री हुक्मीचन्द जी म.सा. की परम्परा, गुजराती दरियापुरी सम्प्रदाय इत्यादि परम्पराओं के श्रावकों द्वारा बिना श्रमण सूत्र का प्रतिक्रमण किया जाता रहा है। ऐसी स्थिति में परम्परा सत्य को प्रमाणित कैसे कर पाएगी?अतः आगमों का प्रबल आधार सन्मुख रखते हुए श्रावक प्रतिक्रमण में श्रावक सूत्र का ही उच्चारण किया जाना चाहिए, श्रमण सूत्र का नहीं। (श्रमणोपासक, 20 जुलाई, 5 अगस्त, 20 अगस्त एवं 5 सितम्बर के अंकों से साभार) -महामंत्री, श्री अ.भा. साधुमार्गी जैन संघ, बीकानेर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 9 10 11