Book Title: Shraman ka Sthal Jal Vyom Vihar Author(s): Kanhaiyalal Maharaj Publisher: Z_Umravkunvarji_Diksha_Swarna_Jayanti_Smruti_Granth_012035.pdf View full book textPage 5
________________ श्रमण का स्थल, जल-व्योम-विहार / १५३ १. ज्ञानप्राप्ति के लिए से कहीं अतिवद्ध श्रतधर स्थविर विराजित हों, वे अपना अन्तिम समय प्रतिनिकट जानकर स्थानीय संघ से कहे अमुक जगह कुशाग्रबुद्धि, सुदृढधारणा शक्तिवाला श्रमण है। उसे यहाँ अतिशीघ्र पाने के लिए सन्देश भेजें। मैं उसे एक श्रुत विशेष के अनुयोगों की धारणा कराना चाहता है। अन्यथा मेरी धारणायें मेरे साथ ही विलीन हो जायेंगी। इस प्रकार संघ द्वारा श्रुतधर स्थविर का सन्देश प्राप्त होने पर श्रमण वर्षावास में भी विहार करके श्रुतधर स्थविर के समीप जा सकता है। २. दर्शनविशुद्धि के लिए किसी विशिष्ट व्यक्ति को प्रतिबोध देना अनिवार्य हो या श्रद्धाविचलित किसी विशिष्ट व्यक्ति को श्रद्धा में सुदृढ़ करना हो तो वर्षावास में भी विहार करके वहाँ जा सकते हैं जहाँ वे रहते हों। ३. चारित्रवृद्धि के लिए [क] जहां कहीं एक या अनेक व्यक्तियों के दीक्षित होने का आयोजन हो वहाँ जाना यदि अनिवार्य हो तो वर्षावास में भी विहार करके जा सकते हैं। [ख] जहाँ वर्षावास हो वहाँ चारित्र में अतिक्रमादि दोषों के अधिक लगने की सम्भावना हो गई हो तो वर्षावास में भी विहार करके वहाँ जा सकते हैं जहाँ चारित्र शुद्धि या वृद्धि होना सुनिश्चित हो। ४. आचार्य के कालधर्म प्राप्त होने पर प्राचार्य के कालधर्म प्राप्त होने पर जहाँ नये प्राचार्य की नियुक्ति हो रही हो वहाँ वर्षावास में भी विहार करके जा सकते हैं। क्योंकि माचार्य के बिना श्रमणों का रहना या विहरना सर्वथा निषिद्ध है। १. निग्गंथस्स णं नवडहरतरुणस्स पायरियउवज्झाए वीसंभेज्जा । नो से कप्पइ अणायरियउवज्झायस्स होत्तए । कप्पइ से पूव्वं पायरियं उद्दिसावेत्ता तो पच्छा उवज्झायं । से किमाह भंते ! दुसंगहिए समणे निग्गथे, तंजहा–१ प्रायरिएणं, २-उवज्झाएण य ।। निग्गंथीए णं नवडहरतरुणीए पायरिय-उवज्झाए पवत्तिणी य-वीसंभेज्जा, नो से कप्पइ अणायरिय-उवज्झाइयाए अपवत्तिणीयाए होत्तए । कप्पइ से पुवं पायरियं उहिसावेत्ता तो उवज्झायं, तो पच्छा पवत्तिणि । से किमाहु भंते। ? तिसंगहिया समणी निग्गंथी, तं जहा१-पायरिएणं, २-उवज्झाएणं, ३-पवत्तिणीए य । -वव. उ. ३, सु. ११-१२ धम्मो दीवो संसार समुद्र में धर्म ही दीप है Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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