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सम्पादकीय
आज जैन विद्या की प्रतिष्ठित शोध-पत्रिकाओं में श्रमण सम्भवतः सबसे प्राचीन है । अर्धशतक से प्रकाशित हो रही इस शोध पत्रिका में अब तक जैन धर्म-दर्शन के विविध पक्षों पर देश के लब्ध प्रतिष्ठित विद्वानों के हजारों लेख प्रकाशित हो चुके हैं जो अन्यत्र दुर्लभ हैं । लम्बे समय से विद्वानों एवं प्रबुद्ध पाठकों की माँग थी कि इसमें प्रकाशित लेखों की कोई एक ऐसी सूची प्रकाशित हो जिससे शोधार्थियों को अपने इच्छित विषय के लेखों के बारे में जानकारी हो सके । जैन विद्या के अन्तर्राष्ट्रीय ख्यातिप्राप्त विद्वान् और संस्थान के मानद् निदेशक प्रो० सागरमल जैन के निर्देशन में श्रमण में प्रकाशित लेखों की सूची तैयार की गयी । यह सूची तीन खण्डों में है । प्रथम खण्ड में लेखों को वर्ष क्रमानुसार रखते हुए पूरे संदर्भ के साथ उनकी सूची दी गयी है । द्वितीय खण्ड में लेखकों का वर्णक्रमानुसार वर्गीकरण करते हुए अकारादिक्रम से उनके लेखों की पूरे संदर्भ के साथ सूची है । तृतीय खण्ड में लेखों को विषयानुक्रम से विभाजित किया गया है, जिससे पाठकों को अपने मनोनुकूल विषय के लेखों को ढूँढ़ने में कठिनाई न हो । कोई भी जिज्ञासु पाठक या शोधार्थी अपने मनोनुकूल विषय के किसी भी लेख की फोटो प्रति लागत मूल्य पर घर बैठे प्राप्त कर सकता है । इस सूची को निर्दोष तैयार करने में विद्यापीठ के प्रवक्ता डा० विजय कुमार जैन, डा० सुधा जैन एवं डॉ० असीम कुमार मिश्र ने अथक परिश्रम किया है ! उन्हें धन्यवाद देकर मैं उनके महत्त्व को कम नहीं करना चाहता। इस ग्रन्थ के निर्दोष मुद्रण हेतु यद्यपि पर्याप्त सावधानी रखने का प्रयास किया गया, परन्तु मेरी अल्पज्ञता और प्रमादवश मुद्रण सम्बन्धी कुछ त्रुटियाँ रह गयी हैं जिनके लिये मैं पाठकों से क्षमाप्रार्थी हूँ ।
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शिवप्रसाद
सम्पादक
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