Book Title: Shatrunjay uper thayel Pratishthano Ahewal
Author(s): Ratilal D Desai
Publisher: Anandji Kalyanji Pedhi

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Page 13
________________ - - ॥६॥ श्री शत्रुजय तीर्थपति श्री ऋषभदेवस्वामिने नमः। श्री पुंडरीकस्वामिने नमः। स्वस्ति श्री परम पवित्र तीर्थाधिराज श्री शत्रुजयगिरि,श्रीराणकपुर,रेवतगिरि श्री कुंमारियाजी,श्री तारंगा, श्रीमझीजी,श्री शेरीसाप्रभृति जैन तीर्थानां संरक्षणादि - समग्र व्यवस्थानां नियामकः समस्त भारत वर्षीय जैन श्वेताम्बरमूर्तिपूजकश्री संछानांप्रतिनिधिः श्रेष्ठि श्री आणन्दजी कल्याणजी नामा संशोऽस्ति। श्री सिद्धाधलमहातीथोपरि तीर्थपति श्रीयुगादिदेव प्रासादेऽन्येवस्थानेष प्राक्तनजने प्राचीन जैन शिल्पकलामवरुध्य बहनि जिनबिम्बानि प्रतिष्ठितानि अतस्तां शिल्पकलां पुनः समद्धत तानि जिनबिम्बानि तत उत्थाप्य श्रीसिद्धाचल तीर्थोपरि अष्टलक्षरुप्यकव्ययेन नूतनजिनमन्दिर निर्माय तत्र देवद्रव्यवृद्धिपुरस्सरं पुनः प्रतिष्ठापयितुंच श्री आणन्दजीकल्याणजी संघस्य सभ्यः सर्वसम्मत्या शास्त्रानुसारी सुविहितपरंपरानुसारीचनिर्णयः कृतः सवनिर्णयः तपागच्छ-खरतर अंचल-पार्धचंद्र त्रिस्तुतिकादिगच्छीय जैनाचार्यादिमुनिराजेरनुमान। ____एतन्निर्णयानुसारं बिम्बोत्थापन-दापञ्चाशदेवकुलिका समेत-गगनचुन्धि शिरवरशोभित-शिल्पकला रमणीय नूतनजिनालय निर्माणादि कार्याणिश्री समप्रमुख श्रेष्ठि श्रीकस्तूरभाई लालभाई सूचनानुसारं श्री आणन्दजीकल्यान जीसशेन विहितानि। - ततच शासन सम्राट् तपा-आ.श्रीविजय नेमिसूरीश्चर पर आ.श्री विजयोदयसूरीधर पट्टधरैःबिम्बोत्थापनादाराभ्य प्रतिष्ठं मार्गदर्शनमालमुहूर्तादिप्रदातृभिः स्व.आ.श्री विजयनन्दनसूरीश्वरैः प्रवृत्ते शुभमुहूर्ते वि.सं. २०३२ माघशुकूसप्तम्यां शनिवासरे (आंग्ल दिनांक ७.२.१९७६ दिने)शुभवेलाया नृतनजिनालये युगादिदेव नूतनादीश्वर-गांधारियाऽऽदीवर-सीमन्धरादीवर पुंडरिकस्वामिप्रभृतिजिनालयानामुपरितनभागेषु च चतुरुत्तर पञ्चशत जिन बिम्बानातेन श्री आणन्दजी कल्याणजी सोनपुनः प्रतिष्ठा विधिःकारितः। एतत प्रतिष्ठामहात्सव भारतवर्षीयाऽनेकनगरवास्तव्य श्रीसच्चैः समागन्य पूजाप्रभावना-सशभोजन-अभयदानादि विशिष्ट धर्मकृत्य विधान द्वारा पूर्व शासन प्रभावना विहिता। एषा च प्रतिष्ठा आ.श्री विजयनेमिसूरीधरपट्टधर आश्री विजय विज्ञानसूरीश्वर पट्टधर आ श्री विजयकस्तूरसूरीश्चराणा निभायां संपन्ना। अस्मिन अक्सर च जेनसशान्तर्गत सर्वगच्छीयाचार्यादि मुनिवराणाम् आ.श्री हेमसागरसूरिजी,आ.श्री देवेन्द्रसागरसरिजी (पू.आगमीद्धारक आ.श्री आनन्दसागरसूरीश्वर शिष्य प्रशिष्य )आ.श्री विजय मोतीप्रभसूरिजी,आ.श्री विजय प्रियंकस्सूरिजी,आ.श्री विजय चंद्रोदयसूरिजी,आ.श्री विजयनीतिप्रम सूरिजी,आ.श्री विजय सूर्योदयसूरिजी (पू.शासन सम्राट शिष्य प्रशिष्य)। आ.श्री विजय मालप्रभसूरिजी,आ.श्री शान्तिविमलसूरिजी,आ.श्री विजय प्रभवचन्द्रसूरिजी,आ.श्री दुलभसागरसूरिजी आ.श्रीरामरत्नप्रभसरिजी.आधी आ.श्री अरिहंतसिद्धसरिजी,पं.श्री बलवंतविजयजी गणि खरतरगच्छीय अनुयोगाचार्य श्रीकान्तिसागरजी पाचचन्द्रगच्छीय मुनि श्री विधाचन्द्रजी प्रभृति सर्वगच्छीय साधूनां साध्वीन चसहस्त्रं समुपस्थितम्। एतन्नूतन जिनमन्दिरस्य निर्माणकार्य श्री अमृतलाल मूलशंकर त्रिवेदीत्यभिधशिल्पशास्त्रिणा विहितमाभारतवर्षीयसाम्प्रतगणनाक्रनुशासक-प्रधानमन्त्रि श्री इन्दिरा गांधी विजयिनि राज्यशासने संजोया प्रतिष्ठा आचन्द्रार्क नन्दतान्॥ शुभं भवतु चतुर्विधस्य श्री सस्था - નૂતન જિનપ્રાસાદની પ્રતિષ્ઠાનો શિલાલેખ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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