Book Title: Shastravartta Samucchaya Part 5 6
Author(s): Haribhadrasuri, Badrinath Shukla
Publisher: Divya Darshan Trust

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Page 7
________________ पृष्ठ पृष्ठ विषयः २९ ज्ञान और अर्थ में भेदसिद्धि अशक्य है ३० शान-अर्थ का भेद होने पर सम्बन्धानुपपत्ति ३१ ग्राह्य-ग्राहक नियम सर्वथा अमान्य २१ भिन्नरूप ग्रहणक्रिया का भान स्वत: या परत:? ३२ कर्म-कर्तृ भेदप्रतीति की भ्रमरूपता ३३ रूपादि में चक्षु से प्रकाशमानता का माधान ३४ दृश्यमान और पूर्वदृष्ट में एकत्व असिद्ध ३५ प्रत्यभिज्ञा में बुद्धि-एकत्व की अनुपपत्ति ३६ मथं को अनुमानपूर्व सत्ता सिद्धि अशक्य ३६ कादाचिरक नीलाद्याकार से बाह्यार्य की सिद्धि मशक्य ३७ अनेक दर्शन साधारण एक नील की असिद्धि ३७ सन्तान भेद से सुखादि का भेद मानने में अनवस्था ३८ जडरूपता और चिद्रूपता भेदक नहीं है ३८ शक्तिभेद से आकारभेद का निरसन ३६ आधारता की प्रतीति अविद्यामूलक ४० बदर प्रतियोगिकस्वादि की अविवेच्यता ४१ अग्रहण ही बाह्याभावसिद्धि में प्रमाण ४२ पुत्र के दर्शन से शोक प्रसंग का अनिष्ट बौद्ध को नहीं है ४२ अर्थ के अदर्शन से उसके अभाव के ग्रहण का तात्पर्य ४३ बाह्याथग्रहण से अनुविद्ध विज्ञान का स्वसंवेदन- उत्तरपक्ष ४४ एक ही ज्ञान अनेकाकार हो सकता है ४५ सहोपलम्भ नियम की तीन विकल्पों से समीक्षा ४६ व्याप्ति में पुरुषाभेद के प्रवेश करने पर अनिष्ट ४७ क्रमिकोपलम्भाभाव-दुसरे अर्थ की समीक्षा ४७ कर्म-कर्तृ भाव की प्रतीति अविद्यामूलक नहीं ४८ अनुमान में लिंगात्मकता की आपत्ति ४८ भिन्न प्रत्यासत्ति से अर्थ ग्रहण में आपत्ति की तुल्यता विषयः ४९ ग्रहणक्रिया के ऊपर झारोपित दोष का प्रतिकार ५० बौद्धमत में अनुमान का असम्भव ५० पूर्वोत्तर समारोप क्षण में हेतु-फल भाव का असम्भव ५१ प्रत्यभिज्ञा से पूर्वदृष्ट अर्थ के एकत्व का प्रमाणभूत बोष ५२ प्रत्यक्ष के लक्षण की प्रत्यभिज्ञा में अति __व्याप्ति नहीं है ५३ अर्थ की पूर्वकालीन असत्ता में दर्शन असमर्थ ५४ वह्निविशिष्ट देश के अनुमान की दिग्नाग उक्ति असार ५५ अपरोक्षरव ग्राह्यत्वाभाव का प्रयोजक नहीं ५६ सुखादि का ज्ञानादि के साथ अत्यन्ताभेद असिद्ध ५७ सुखादि का उपादान आत्मद्रव्य ५७ आधार-आधेयभाव कल्पनामूलक नहीं ५८ अहमाकार देहालम्बन या निरालम्बन नहीं ५६ जगत् केवल ज्ञानमात्र नहीं है ६० प्रवृत्ति और प्राप्ति से बाह्यार्थ का अस्तित्व ६० घट की प्राप्ति ज्ञानात्मक नहीं है ६० विज्ञानवाद में घट प्राप्ति की अनुपपत्ति ६१ विज्ञानवाद कुम्हार-आजीविका का भंग ६१ अर्थ का नाम पलटने से स:य नहीं बदलता ६२ स्मृति-प्रत्यभिज्ञा और कौतुक से बाह्यार्थ- . सिद्धि ६३ बौद्ध का पूर्वपक्ष-दृष्टाभेद में अर्थ भेद ६४ पूर्वचित्तसत्तावत् अर्थसत्ता का समर्थन -उत्तरपक्ष ६४ ज्ञानभिन्नत्वरूप से अनध्यवसित नीलादि असत् होने की शंका का उत्तर ६५ ज्ञान-अर्थ में अनुमान से अद्वयत्व की सिद्धि अशक्य ६६ अर्थविरोधी युक्तियाँ ज्ञान के विरोध में समान

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