Book Title: Shastra Sandesh Mala Part 09
Author(s): Vinayrakshitvijay
Publisher: Shastra Sandesh Mala

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Page 12
________________ // 24 // // 25 // // 26 // // 27 // // 28 // // 29 // स क्रोधमानमाया-लोभैरतिदुर्जयैः परामृष्टः / प्राप्नोति याननन्, कस्तानुद्देष्टुमपि शक्तः क्रोधात्प्रीतिविनाशं, मानाद्विनयोपघातमाप्नोति / शाठ्यात्प्रत्ययहानिः, सर्वगुणविनाशनं लोभात् क्रोधः परितापकरः, सर्वस्योद्वेगकारक: क्रोधः / वैरानुषङ्गजनकः, क्रोधः क्रोधः सुगतिहन्ता श्रुतशीलविनयसन्दूषणस्य धर्मार्थकामविघ्नस्य / मानस्य कोऽवकाशं, मुहूर्तमपि पण्डितो दद्यात् मायाशीलः पुरुषो, यद्यपि न करोति किञ्चिदपराधम् / सर्प इवाविश्वास्यो, भवति तथाप्यात्मदोषहतः सर्वविनाशाश्रयिणः, सर्वव्यसनैकराजमार्गस्य 1 लोभस्य को मुखगतः क्षणमपि दुःखान्तरमुपेयात् एवं क्रोधो मानो, माया लोभश्च दुःखहेतुत्वात् / सत्त्वानां भवसंसारदुर्गमार्गप्रणेतारः ममकाराहङ्कारावेषां, मूलं पदद्वयं भवति / रागद्वेषावित्यपि, तस्यैवान्यस्तु पर्यायः . मायालोभकषाय-श्चेत्येतद्रागसंज्ञितं द्वन्द्वम् / क्रोधो मानश्च पुन-द्वेष इति समासनिर्दिष्टः मिथ्यादृष्ट्यविरमण-प्रमादयोगास्तयोर्बलं दृष्टम् / तदुपगृहीतावष्टविध-कर्मबन्धस्य हेतू तौ स ज्ञानदर्शनावरणवेद्यमोहायुषां तथा नाम्नः / गोत्रान्तराययोश्चे-ति कर्मबन्धोऽष्टधा मौलः पञ्चनवद्वयष्टाविंशतिकश्चतुःषट्कसप्तगुणभेदः / द्विपञ्चभेद इति सप्तनवतिभेदास्तथोत्तरतः // 30 // // 31 // // 32 // // 33 // // 34 // // 35 // 3

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