Book Title: Shastra Sandesh Mala Part 09
Author(s): Vinayrakshitvijay
Publisher: Shastra Sandesh Mala

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Page 11
________________ // 12 // // 13 // . // 15 // . // 16 // // 17 // ये तीर्थकृत्प्रणीता, भावास्तदनन्तरैश्च परिकथिताः / तेषां बहुशोऽप्यनुकी-र्तनं भवति पुष्टिकरमेव यद्वद्विषघातार्थं, मन्त्रपदे न पुनरुक्तदोषोऽस्ति / तद्वद्रागविषघ्नं, पुनरुक्तमदुष्टमर्थपदम् यद्वदुपयुक्तपूर्व-मपि भैषजं सेव्यतेऽतिनाशाय / . तद्वद्रागार्तिहरं, बहुशोऽप्यनुयोज्यमर्थपदम् वृत्त्यर्थं कर्म यथा, तदेव लोकः पुनः पुनः कुरुते / एवं विरागवार्ता-हेतुरपि पुनः पुनश्चिन्त्यः दृढतामुपैति वैराग्य-भावना येन येन भावेन / तस्मिँस्तस्मिन् कार्य: कायमनोवाग्भिरभ्यासः माध्यस्थ्यं वैराग्यं, विरागता शान्तिरुपशम: प्रशमः। दोषक्षयः कषाय-विजयश्च वैराग्यपर्यायाः इच्छा मूर्छा कामः स्नेहो गावँ ममत्वमभिनन्दः / अभिलाष इत्यनेकानि रागपर्यायवचनानि ईर्ष्या रोषो दोषो, द्वेषः परिवादमत्सरासूयाः / वैरप्रचण्डनाद्या नैके द्वेषस्य पर्यायाः रागद्वेषपरिगतो, मिथ्यात्वोपहतकलुषया दृष्ट्या / पञ्चास्रवमलबहुला-तरौद्रतीव्राभिसन्धानः . कार्याकार्यविनिश्चयसंक्लेशविशुद्धिलक्षणैर्मूढः / आहारभयपरिग्रह-मैथुनसंज्ञाकलिग्रस्तः क्लिष्टाष्टकर्मबन्धन-बद्धनिकाचितगुरुर्गतिशतेषु / जन्ममरणैरजस्र, बहुविधपरिवर्तनाभ्रान्तः मारवानानान्तः दुःखसहस्रनिरन्तर-गुरुभाराक्रान्तकर्षितः करुणः / विषयसुखानुगततृषः, कषायवक्तव्यतामेति // 18 // // 19 // // 20 // // 21 // // 22 // // 23 //

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