Book Title: Shastra Sandesh Mala Part 09
Author(s): Vinayrakshitvijay
Publisher: Shastra Sandesh Mala
View full book text
________________ // 60 // // 61 // // 62 // . // 63 // ||64 // प्राणवधानृतभाषण-परधनमैथुनममत्वविरतस्य / नवकोट्युद्गमशुद्धो-ञ्च्छमात्रयात्राधिकारस्य जिनभाषितार्थसद्भावभाविनो विदितलोकतत्त्वस्य / अष्टादशशीलाङ्ग-सहस्रधारणकृतप्रतिज्ञस्य परिणाममपूर्वमुपागतस्य शुभभावनाध्यवसितस्य / अन्योऽन्यमुत्तरोत्तर-विशेषमभिपश्यतः समये . वैराग्यमार्गसंप्रस्थितस्य संसारवासचकितस्य / स्वहितार्थाभिरतमतेः शुभेयमुत्पद्यते चिन्ता भवकोटीभिरसुलभं, मानुष्यं प्राप्य कः प्रमादो मे। न च गतमायुर्भूयः, प्रत्येत्यपि देवराजस्य आरोग्यायुर्बलसमु-दयाश्चला वीर्यमनियतं धर्मे / तल्लब्ध्वा हितकार्ये, मयोद्यमः सर्वथा कार्यः शास्त्रागमाइते न हितमस्ति न च शास्त्रमस्ति विनयमृते / तस्माच्छास्त्रागमलिप्सुना विनीतेन भवितव्यम् कुलरूपवचनयौवन-धनमित्रैश्वर्यसंपदपि पुंसाम् / विनयप्रशमविहीना, न शोभते निर्जलेव नदी न तथा सुमहाध्यैरपि, वस्त्राभरणैरलङ्कृतो भाति / श्रुतशीलमूलनिकषो, विनीतविनयो यथा भाति गुर्वायत्ता यस्माच्छास्त्रारम्भा भवन्ति सर्वेऽपि / तस्माद्गुर्वाराधन-परेण हितकाङ्क्षिणा भाव्यम् धन्यस्योपरि निपतत्यहितसमाचरणधर्मनिर्वापी / गुरुवदनमलयनिःसृतो, वचनसरसचन्दनस्पर्शः दुष्प्रतिकारौ माता-पितरौ स्वामी गुरुश्च लोकेऽस्मिन् / तत्र गुरुरिहामुत्र च, सुदुष्करतरप्रतीकारः ' // 66 // // 67 // // 68 // // 69 // // 70 // // 71 //
Page Navigation
1 ... 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 ... 330