Book Title: Shantinath Charitra Hindi Author(s): Bhavchandrasuri Publisher: Kashinath Jain View full book textPage 2
________________ पाँचवे प्रस्तावमें दशवे और ग्यारहवे भवका वर्णन आता है। और छ? प्रस्तावमें बारहवे' भवका वर्णन आता है। इस तरह भगवान् के बारह भवोंका सुविस्तृत वर्णन बड़ीही उत्तम रीतिसे दिया गया है। इस चरित्रके आदिके पाच-प्रस्तावोंमें, मंगल-कलशकी कथा, मत्स्योदरकी, मित्रानन्द-अमरदत्तकी, पुण्यसारकी, और वत्सराजकी ये पाचों कथाये बड़ीही मनोरञ्जक एवं शिक्षा प्रद हैं। और इनका विस्तार भी लंबा आता है। इसके अतिरिक्त और भी छोटी-मोटी रोचक कथाये आती हैं। छठे प्रस्तावमें तो कथाओंका खजाना भर दिया गया है। छोटी-मोटी बहुबसी कथायें आती हैं। प्रत्येक कथा उपदेशसे भरी हुई है, पाठकोंसे हम अनुरोध करते हैं, कि उन्हें ध्यान देकर अवश्य पढ़ें। आबाल वृद्ध वनिता-सबके लिये इस पुस्तकमें अमूल्य उपदेश भरे हुए हैं। इसका पाठ करने, इसके उपदेशोंको हृदयङ्गम करने और इसके आदर्श चरित्रोंका अनुसरण करनेसे मनुष्यका जीवन उन्नत, पवित्र और अनुकरणीय हो आ सकता है। छोटे-बड़े, स्त्री-पुरुष सभी के लिये यह ग्रन्थ अतीव उपदेशजनक है। इसी लिये विपुल व्यय कर इतनो सुन्दरताके साथ हमने इसे प्रकाशित किया है। इस ग्रन्थके पहले हमारी छ पुस्तकें आप सजनोंके समक्ष भेट हो चुकी हैं। आज यह सातवीं पुस्तक भी आपके कर-कमलोंमें समर्पण की जाती है। आशा है, पहलेकी पुस्तकोंके अनुसार इसे भी सप्रेम अपना कर हमारे उस्ताहको परिवर्द्धन करेंगे। इस ग्रन्थके किसी किसी चित्रों के भावमें दोष आ गया है, एवं शीघ्रताके कारण छपने में भी अनेक स्थल पर अशुद्धियाँ रह गई हैं, उसके लिये पाठकों से हमारी क्षमा याचना है। ता० 27-6-1925 आपका 201 हरिसन, रोड कलकत्ता। काशीनाथ जैन P.P.Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak TrustPage Navigation
1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 ... 445