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सज्जन भावना सज्जनों के लिए
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प्रत्येक आत्मार्थी चाहता है
धवाभिनंदी से भावाभिनंदी कर्म रोगी से कर्म योगी
भोगार्थी से मोक्षार्थी बनना पर प्रश्न है कि कैसे करे स्वयं में
समत्व का आटोपण तीर्थंकरत्व का शोधन
लघुता, विनय आदि गुणों का वर्धन जिससे हो सके
आंतरिक कलुषता स्वं दोषों का निरीक्षण देह आसक्ति एवं कषायों का शोषण
विधावों से सध्यावों का रक्षण अतः परमात्मा ने बताया है
आत्म शुद्धि का एक क्रमिक चरण ममता से समता में आने का अपूर्व करण
गुण शून्य आत्मा को गुणवासित करने का अमूल्य क्षण उसी अनुक्रम से
आल्म पथ को प्रकाशित करने हेतु
एक मार्मिक अनुशीलन....