Book Title: Shabdaratnamahodadhi Part 2
Author(s): Muktivijay, Ambalal P Shah
Publisher: Vijaynitisurishwarji Jain Pustakalaya Trust Ahmedabad
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चक्रायुध-चक्षुष्य]
शब्दरत्नमहोदधिः।
८२१
चक्रायुध पुं. त्रि. (चक्रमायुधमस्य) विष्ण, २i | प्रति+आ+चक्ष प्रत्याज्यान ४२, ति२२७१२. ४२वो.. ___ थियारवाj.
वि+आ+चक्ष व्याज्यान. ४२, विव.२५॥ ७२. चक्रावर्त पुं. (चक्रस्येवावर्त्तः) Plust२ धूम, धूम.. सम्+आ+चक्ष सारी श. ४. परि+चक्ष् सर्व चक्राह्व पुं. (चक्रमिव आह्वा यस्य) यमई-दुवाउया त२५थी. उ.सं५५ . -वेदप्रदानाचार्यं पितरं नामर्नु वृक्ष, 28415 ५६. . हंससारसचक्राह्व- परिचक्षते-मनु० २।१७१ । प्र+चक्ष अत्यंत ४३j - काकोलूकादयः खगा:-भाग० ३।१०।२४ ।
स्वजनाश्रु किलातिसंततं दहति प्रतमिति प्रचक्षतेचक्रि त्रि. (कृ+कि द्वित्त्वम्) ४२ना२, ७२वाना स्वभाव, रघु० ८।८६, -योऽस्यात्मनः कारयिता तं क्षेत्रज्ञं वाणु, -चक्रये पुरुषार्थकरणशीलाय- दयानन्दकृत- प्रचक्षते-मनु० १२।१२१ । प्रति+चक्ष् प्रत्युत्तर आपको. भाष्ये ।
वि+चक्ष् विशेष ४. सम्+चक्ष सारी रात 3. चक्रिक त्रि. य नामर्नु आयुध सई ४-२, ते.. चक्षण न. (चक्ष+ल्यूट) अनुसाउथी व पासवं, घांयी, कुंभार.
મદ્યપાન વગેરે ઉપર રુચિ કરાવનાર પદાર્થ. चक्रिका स्त्री. (चक्रम् तदाकारोऽस्त्यस्याः ठन्) ढीयए। चक्षणि त्रि. (चक्ष्+अनि) , प्रगट ३२ना२. ___ -अथोभयधनादायि भृत्यचक्रिकया समम्-राजत० चक्षस् पुं. (चक्ष्+असि न ख्यादेशः) पृस्पति, २०४।३७६ । 291, म., २शि-
al.
6॥ध्याय, माध्यात्मि. गुरु. चक्रिन् पुं. (चक्रमस्त्यस्य इनि) वि!, As40s पक्षी, | चक्षुःश्रवस् पुं. (चक्षुषा श्रृणोति श्रु+असुन्) सी,
सप, कुंभार, ४२, घांयी, यवता -चालयति स॥५. स्त्री. सा५९l. पार्थिवानपि यः स कुलालः परं चक्री- आर्यास० | चक्षुर्गाचर पुं. (चक्षुषो गोचरः) दृश्य, दृष्टिगोयर, ५९२ । ७0032, गधे, भावम160.-Duमना | दृष्टिना भयाहम भावतुं. मो. 'चक्षुर्विषयः' श६. સમૂહનો અધિકારી, વ્યાલ-વાઘ વગેરે જંગલી પશુનો चक्षुर्दान न. (चक्षुषोर्दानम्) मूर्तिनी प्रतिष्ठा ५८ नम, मे. .४२, नेत२, वाउिया. (त्रि.) तन नेत्र या. cudw२, याउियुं, Asuj, पै.उialj, पैinो चक्षुर्मल न. (चक्षुषोर्मलम्) भजनी मेल-थी५.. २२. वगेरे.
चक्षुर्वर्द्धनिका स्त्री. मे नही.. चक्रिणी स्त्री. (चक्रिन्+ङीप्) 234151, Ru५९l, डुम॥२५॥, चक्षुर्वहन न. (चक्षुस्तज्ज्योतिर्वहति वह+ल्यु) AUnk घil, 4.30, 11, 1150.
13. चक्रीवत् पुं. (चक्रं तद्वद्भ्रमणमस्त्यस्य मतुप्) 31, चक्षुर्विषय पुं. (चक्षुषोर्विषयः) नेत्रथा. अ. १२८
त. मनो २०%. (त्रि.) यsuj, पैiuY. યોગ્ય રૂપ વગેરે, નેત્રનો વિષય, આંખનું જોવું, નેત્ર चक्रीवता स्त्री. (चक्रीवत् स्त्रियां ङीप्) 10. प्रत्यक्ष -चक्षुर्विषयातिक्रान्तेषु कपोतेषु-हितो० १. । चक्रु त्रि. (कृ+कु द्वित्त्वम्) ४२ना२, २मारी. चक्षुर्हन् त्रि. (चक्षुषा हन्ति हन्+क्विप्) मात्र दृष्टिपातथी चक्रेश्वर पुं. (चक्रस्य ईश्वरः) राष्ट्रपति, २0%, सेनापति. ४ नाश 5२॥२. चक्रेश्वरी स्त्री. (चक्रस्य ईश्वरः+ङीप्) महेव. चक्षुष्मत् त्रि. (प्रशस्तं चक्षुः अस्त्यस्य मतुप) नेत्रवाj, તીર્થકરની ભક્તિ દેવી-જિનશાસનની અધિષ્ઠાત્રી દેવી, सुं६२ नेत्रवाणु -तदा चक्षुष्मतां प्रीतिरासीत् समरसा
જૈન તેમ સોળ વિદ્યાદેવીઓમાં પાંચમી વિદ્યાદેવી. द्वयोः-रघु० ४।१८ ।। चक्रोपजीविन पुं. (चक्रं तैलनिष्पीडनयन्त्रमुपजीवति चक्षुष्मता स्त्री., चक्षुष्मत्व न. (चक्षुष्मतो भावः तल
उप+जीव+णिनि) घाया, हुमार. चक्ष् (अदा. आ. स. सेट-चष्टे) ४३, त्या ४२व.. चक्षुष्य त्रि. (चक्षुषे हितः यत्) Hinने उतारी, प्रिय
अनु+चक्ष् पाथी . 53. अभि+चक्ष् सामे. २४ी. દેખાવવાળું, સુંદર, નેત્રમાં થનાર, આંખમાં થયેલलो. अव+चक्ष नीये. लो. आ+चक्ष् ४. . चक्षुष्यः खलु महतां परैरलयः-शि० ८५७ । इत्याख्यानविद आचक्षते-मा० २।२१ । अनु+ (पुं.) वार्नु काउ, पुंडरी वृक्षत, स.२२॥, २४.४न..
आ+चक्ष सन्वाज्यान. १२. अभि+आ+चक्ष साभ (न.) सौवी२०४न, सुरभो, २४., tणु परियु, 53. उद् + आ+चक्ष 6६८४२५मा५. | पौ31.5, स्थ६५६..
न. (चक्षुष्मतो भावः तर
त्व) withत्व
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