Book Title: Sarak Jati Aur Jain Dharm
Author(s): Tejmal Bothra
Publisher: Jain Dharm Pracharak Sabha

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Page 3
________________ ( २ ) था कि शिखरगिरिकी यात्रा कर चुकने के बाद फिर वे कृषि कार्य्य न करें। यही कारण हुआ कि उन्हें अपनी दरिद्रताके कारण उक्त नियम पालनेमें असमर्थ होने पर यात्रा त्याग करने को विवश होना पड़ा । इन लोगोंका धन्धा ( व्यवसाय ) वाणिज्य और कृषि कार्य्य था, पर अब केवल कृषि और कहीं कहीं कपड़े आदिका बुननेका काम ही इनकी जीविका निर्वाहका साधन रह गया है । ये लोग ई० सन्के पूर्व से ही मानभूम एवं सिंहभूम आदि जिलोंमें बसे हुए हैं और अपनी भलमनसियत के कारण प्रख्यात हैं। कर्नल डल्टन का कथन है— कि उनमें से एक भी व्यक्ति ऐसा नहीं पाया गया जो जुल्मी साबित हुआ हो और आज भी वे इस बातका पूरा गर्व कर सकते हैं कि वे अपने और अपने सहवर्त्तियों के बीच बड़ी शांतिके साथ जीवन व्यतीत करते हैं । अब कहीं २ वे इस बात को भूलकर कि वे जैन ही हैं, कहीं अपना परिचय बौद्ध और कहीं हिन्दू कहकर देने लगे हैं । यहां तक कि कोई कोई तो अपने को शूद्र भी समझने लगे हैं । परन्तु निम्न उदाहरणों को देखने से इसमें तनिक भी संशय नहीं रह जाता है कि वे जैन ही हैं और सैकड़ों वर्षोंसे इस वातावरण ( जिसका जैन धर्म से कोई सम्बन्ध नहीं है ) में रहनेके कारण अपने का भूलने लगे हैं । सन् १९११ ई० के मानभूम जिलेके गजेटियर्स के पेज ५१ व ८३ में से सराक जाति सम्बन्धी विशेष उल्लेख में से पे० ५१ का कुछ अंश :--- Reference is made elsewhere to a peculiar people bearing the name of Sarak (variously

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