Book Title: Sarak Jati Aur Jain Dharm
Author(s): Tejmal Bothra
Publisher: Jain Dharm Pracharak Sabha

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Page 7
________________ कटक का बंकी थाना और पुरीके पिपली थानेमें बसे हुए हैं। ये लोग भी अन्यान्य सराकोंकी तरह कट्टर शाकाहारी हैं। प्रति वर्ष माघी सप्तमीके दिन ये लोग खण्डगिरिको गुफाओंमें जाकर वहां की (जैन ) मूर्तियों की पूजा स्तवना करते हैं।" - और भी बङ्गाल सेन्सस रिपोर्ट (नं० ४५७ ) के पेज २०६ में लिखा है-"प्राचीन कालमें पार्श्वनाथ पहाड़के निकटस्थ प्रदेशोंमें जैनियोंकी काफी वस्ती थी; मानभूम और सिंहभम तो इन लोगोंके खास निवास स्थान थे। जैनियोंके कथनानुसार भी यह स्पष्ट है कि इन सब प्रान्तोंमें भगवान महावीरने विचरण किया था। वहां की जनश्रुति भी यही है कि प्राचीन कालमें इन स्थानोंमें सराकोंका राज्य था और उन लोगोंने कई जिन मन्दिर बनवाये थे। मानभूम में जैनियोंके कई प्राचीन स्मारक और सिंहभूममें कई तामेंकी खाने पाई गई हैं। ये लोग प्राचीन जैन श्रावक हैं और अब इनकी सन्तान सराक नामसे ख्यात हैं। .. उपर्युक्त रिपोर्टों के अतिरिक्त भी कई निम्न लिखित ऐसे प्रमाण हैं जिनसे यह निःशंसय कहा जा सकता है कि ये लोग जैन संतान ही हैं। . (१) इनके गोत्रोंका आदिदेव, अनन्तदेव, धर्मदेव और काश्यप ( भगवान पार्श्वनाथ और महावीर स्वामी का भी यही गोत्र था) आदि नामोंका होना । जैनेतर किसी भी जातिमें इन गोत्रों का होना असम्भव सा है। - (२) इनके ग्रामों तथा घरों में कहीं २ अब भी जिन मूर्तियों का पाया जाना और इनका उन्हें भगवान पार्श्वनाथके रूपमें पूजना।

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