________________
(६)
ही कालमें एक करोड़से घटकर केवल १२ लक्ष ही रह गये हैं, वे भी न रह सकेंगे । हमारे लिये यह सुवर्ण अवसर है कि हम अपने आदि जैन ( सराक ) बन्धुओंको पुनः उनके वास्तविक स्वरूपमें लाकर थोड़े ही उद्योगसे १२ लक्ष से १३ लक्ष हो जायँ और उन्हें पथच्युत होनेसे भी बचा लें। यह हमारे लिए परम सौभाग्य की बात है कि श्रीमान् बाबू बहादुरसिंहजी सिंघी, गणेशलालजी नाहटा एवं अन्यान्य कई एक महानुभावोंका ध्यान इसमहत कार्यकी ओर आकर्षित हुआ है और उनकी प्रेरणासे हमारे परमपूज्य न्याय-विशारद, न्याय-तीर्थ, उपाध्याय श्रीमङ्गलविजयजी महाराज एवं उनके शिष्यरत्नश्रीप्रभाकर विजयजी महाराज जी जान से इन (सराकों) में धर्म प्रचार कर रहे हैं। केवल इतना ही नहीं, कलकत्ता व झरियामें "श्री जैन धर्म प्रचारक सभा” नामक संस्थाएं भी प्रचार कार्य के लिये स्थापित की गई हैं और प्रचार कार्य में काफी सफलता भी प्राप्त हुई है। हमें भी चाहिए कि हम अपने तन, मन और धन से इस महान् काय्य में जुट जायँ । जहाँ संसार के प्राणी मात्र पर हमारी यह भावना होनी चाहिए कि “सवि जीव करु शासन रसी” वहां यदि हम इन सुलभ बोधी भाइयों ( जो चाहते हैं कि हम उन्हें अपनाले) का भी उद्धार न कर सकें, इससे बढ़कर हमारे लिए शर्म और लेद की बार क्या हो सकती है ? हमारे सामने यह एक ही ऐसा महान कार्य है कि जिसमें हमारा प्रधान से प्रधान कर्त्तव्य और जिन शासन की महती सेवा समाई हुई है। अतः मैं अपने पूज्य धर्माचार्य मुनि महाराज
और सहधर्मी बन्धुओं से यही विनम्र प्रार्थना करूंगा कि वे इन बिछुड़े हुए भाइयों को उनके वास्तविक स्वरूपमें लाकर महान् से महान् पुण्य के भागी बनें और संसारके इतिहास में अपने नाम को स्वर्णाक्षरोंमें लिखाकर अपनी कोर्ति को अमर कर जायें ।