Book Title: Sarak Jati Aur Jain Dharm Author(s): Tejmal Bothra Publisher: Jain Dharm Pracharak Sabha View full book textPage 2
________________ सराक जाति और जैनधर्म । यह जानकर हमें अपार हर्ष होना चाहिये कि इसी बङ्गाल, बिहार और उड़ीसामें एक ऐसी जाति निवास कर रही है जो प्रायः अपने निजी स्वरूप को भूल सी गई है। न हमलोगों को ही उसके सम्बन्धमें कुछ जानकारी थी किन्तु गवर्नमेण्ट द्वारा प्रकाशित सन्सस रिपोर्ट और डिस्ट्रिक्ट गजेटियर्सने यह सुस्पष्ट कर दिया है कि इन प्रान्तोंम रहनेवाले “सराक” वस्तुतः जैन श्रावक हैं । इन लोगोंके गोत्र, रहन-सहन और आचार-विचार, देखकर केवल यह मालूम ही नहीं हो जाता वरन् दृढ़ निश्चय हो जाता है कि ये लोग जैन ही हैं। ये लोग मानभूम, वीरभूम; सिंहभूम, पुरूलिया, रांची, राजशाहो, वर्तमान, बांकुड़ा, मेदनीपुर आदि जिलों तथा उड़ीसाके कई एक जिलों में बसे हुए हैं। यद्यपि ये लोग प्रायः अपने वास्तविक स्वरूपको भूल से गये हैं, फिर भी अपने कुलाचारको लिये हुए कट्टर निरामिष भोजी हैं। धर्म कर्म के सम्बन्धमें वे अपने कुलाचार और भगवान पार्श्वनाथ के उपासक हैं। इससे अधिक ज्ञान नहीं रखते । न उनका किसो खास धर्म की ओर राग ही है। पर, हां, यह उनमें से प्रायः सभी अच्छी तरह जानते और मानते हैं कि उनके पूर्वज जैन थे। वे लोग शिखरगिरि की यात्रा करने जाया करते थे। यह देखने वाले वयोवृद्ध तो उनमें अब तक मौजूद हैं । उन लोगोंमें ऐसा बंधनPage Navigation
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