Book Title: Saptasandhan Mahakavya
Author(s): Meghvijay, Amrutchandracharya
Publisher: Jain Sahitya Vardhak Sabha

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Page 5
________________ क्यां विहार कर्यो ते, गणधरोनी स्थापना, अनेक जीवोने करेल धर्मप्रतिबोध आदि वर्णव्या छे. ने इतर वे नायकोए करेल अनेक राजाओनो विजय वगेरे वर्णव्या छे. आ वे सर्गमां बीजी विशेपता ए छे के महाकाव्यना लक्षणने अनुसार एक सर्गमां विविध छन्दोनां मूक्तो छ. ने यमक नामे शब्दालङ्कारना प्रायः जेटला भेदो थाय ले ते सर्वना उदाहरणो छे. यमकनो महायमक नामे जे छेल्लो भेद छे तेनुं उदाहरण पण आमां छे. छए ऋतुनु वर्णन घणुज रसिक आ सोमा ले. छेवट नवमां सर्गमां जिनेश्वरांना मोक्ष कल्याणकादिनुं विशदवर्णन, परम्परावर्णन वगेरे छे. तेनुं नाम 'परम्पराधिकारवर्णन' एवं छे. (६) अन्य काव्यना रचयिता कोइ सामान्य कवि होय तो आ काव्यना कर्ता समर्थ महाकवि छे. आ काव्यना प्रथम उत्पादक कलिकाल सर्वज्ञ भगवान श्रीहेमचन्द्रभूरिजी महाराज छे, के जेमनी सर्वशास्त्रविषयक विद्वत्ता मादे, आजे कोइपण बेमत नथी. तेओश्रीए काव्यसृष्टिमा चमत्कार उपजावे एवं सर्वाङ्गसुन्दर सप्तसन्धान महाकाव्य योज्युं हतुं. परन्तु कराल काल तेनी सुन्दरता सांखी न शक्यो, ने तेने निःसहाय स्थितिमा जोइ छिन्नभिन्न करी पीखी नाख्यु. त्यारबाद सत्तरमो अने अढारमी सदीना सङ्गमकाळमां झळकता, साहित्यना अद्वितीय विद्वान् , उपाध्यायजी महाराज श्री मेघविजयजीगणिए ते काव्यने पुनर्जन्म-आप्यो. उपाध्यायजीनी ग्रन्थविरचन शक्ति अद्भुत हती; तेमनां ग्रन्थो अवलोकतां तेमनुं व्याकरण साहित्य ने ज्योतिष विषयक पाण्डित्य अगाध हतुं ए निश्चित थाय छे. सौ करतां तेमनामां एक विशेषता ए हती के, तेओ पादपूर्ति करवानी कळामां अतिशय कुशल हता; ते कळामां तेमनाथी आगळ बधेल कोइपण हजु सुधी जोवामां जाणवामा के सांभलवामां आवेल नथी. तेमणे मावकाव्यनी पादपूर्ति करी पूज्या

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