Book Title: Saptasandhan Mahakavya
Author(s): Meghvijay, Amrutchandracharya
Publisher: Jain Sahitya Vardhak Sabha
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३२६
विषयः
श्लोकोंकः पृष्ठांक: १६. तीथंकराणां निष्कपटं विद्याधरादिदेवैः सेवनम् ३३ . ३२२ १६८ प्रभूणां समवसरणस्थाने बादितदुन्दुभिवाच.
विशेषे कामादेः भयप्राप्तिः १६९ भज्ञजनोपदेशकामनया प्रभूषा पादै विहरणनिरूपणम् ३५ ३२४ १७० प्रभूणां केवल ज्ञानमाहासगविक्षमा वैमानिक.
देवानां ममागमः १५१ प्रभूगां केवलज्ञानप्राप्तिनिरूपणम् १७२ प्रभोः केवलज्ञानमहोस्सये सुरनरनृपतीनां
स्वस्वस्थाने निवनम् १७३ केवलज्ञानोत्सवकाले गजाश्वरोहिणी
माऽस्खलननिरूपणम् १७. ऋषभादेः सदुपदेशकरणम् १७५ ऋषभादेशवचनश्रवणतो बहनां हि मात्तिची
प्रसङ्गपरित्यागनिरूपणम् १.९ केवलज्ञानोत्सवकाले प्रभोर्देशनाश्रवणा
मर्चेषां समागमनम् १७. ईश्वरत्वभाबनया प्रभूसेवक जनानां तदुनुज्ञापालनतो कल्याणप्राप्तिः
३३० १७८ तीर्थंकर देशनातो जनानां हिमावाणधारणात्
निवृत्तिनिरूपणम् १५९ प्रभुसेवाचरणतो मुनीनां स्वस्वपापप्रक्षालननिरूपणम् ४५ १८० जिनेन्द्रोपदेशप्रभावे सर्वेषां परस्परं
द्वेषस्यागपूर्वकं कुशममाप्तिः १८१ तीर्थकराणां दृष्टिपातेन सर्वेषां नम्रीभवनम् १८२ प्रभुदर्शनाय यक्षगन्धर्वदेवमानवानामौत्सुक्यवर्णनम् ४८ १८३ तीर्थकरान् विमा संसारे कर्मग्रन्थीनां प्रसार निरूपणम् १९ ३३५ १८४ जिननाममानोधारणेन कामस्य विलयप्राप्ति: ५० १८५ मुनिसमुदायस्य प्रभुविषयकभफिजन्यशोभानिरूपणम् ५१ 3३६ १५ सर्वजनानन्ददायक जिनस्वापतीर्थंकराणां विहारनिरूपणम्५२
३२०
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