Book Title: Sanatkumar Chavda Punyasmruti Granth
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 643
________________ देखा जाता है कि ससारमे छीना-झपटीकी दो ही वस्तुएं है -१ कामिनी और २ कञ्चन । जबतक इन दोनोके प्रति आन्तरिक सयमकी भावना उत्पन्न नही होगी, तबतक समाजमे शान्ति स्थापित नही होगी । अभिप्राय यह है कि जीवन निर्वाह - शारीरिक आवश्यकताओकी पूर्ति हेतु अपने उचित हिस्से से अधिक ऐन्द्रियक सामग्रीका उपयोग न करना सामाजिक ब्रह्मभावना है । आध्यात्म-समाजवाद समाजवाद शोषणको रोककर वैयक्तिक सम्पत्तिका नियन्त्रण करता है । यह उत्पादनके साधन और वस्तुओके वितरणपर समाजका अधिकार स्थापित कर ममस्त समाजके सदस्योको समता प्रदान करता है । प्रत्येक व्यक्तिको जीवित रहने और खाने-पीनेका अधिकार है तथा समाजको, व्यक्तिको कार्य देकर उससे श्रम करा लेना और आवश्यकतानुसार वस्तुओकी व्यवस्था कर देना अपेक्षित है । सम्पत्ति समाजकी समस्त शक्तियोकी उपज है । उसमे सामाजिक शक्तिकी अपेक्षा, वैयक्तिक श्रमको भी कम महत्त्व प्राप्त नही है । सम्पत्ति सामाजिक रीति-रिवाजोपर आधारित है । अतएव सम्पत्तिके हकोकी भी उत्पत्ति सामाजिक रूपसे होती है । यदि सारा समाज सहयोग न दे, तो किसी भी प्रकारका उत्पादन सम्भव नही है | सामाजिक आवश्यकताएँ व्यक्तिको आवश्यकताएँ हैं । अतएव व्यक्ति को अपनी-अपनी आवश्यकताओकी पूर्ति के साथ सामाजिक आवश्यकताओकी पूर्ति के लिए सचेष्ट रहना चाहिए। प्रत्येक व्यक्तिको उस सीमातक वस्तुओ पर अधिकार करनेका हक है, जहाँ तक उसे अपने को पूर्ण बनानेमे सहायता मिलती है। उसकी भूख प्यास आदि उन प्राथमिक आवश्यकताओकी पूर्ति अनिवार्य है, जिनकी पूर्तिके अभावमे वह अपने व्यक्तित्वका विकास नही कर पाता । उस व्यक्तिको जीवनोपयोगी सामग्री प्राप्त करनेका कोई अधिकार नही, जो जीने के लिए काम नही करता है। दूसरेकी कमाईपर जीवित रहना अनैतिकता है । जिनकी सम्पत्ति दूमरोके श्रमका फल है, वे समाज के श्रमभोगी सदस्य है । उन. वस्तुओके उपभोगका उन्हें कोई अधिकार नही, जिन वस्तुओके अर्जनमे उन्होने सीधे या परम्परारूपमे सहयोग नही दिया है । समाजमे वह अपने भीतर ऐसे वर्गको सुरक्षित रखता है जो केवल स्वामित्वके कारण जिन्दा है । अतएव समाजशास्त्रीय दृष्टिसे प्रत्येक व्यक्तिको श्रमकर अपने अधिकारको प्राप्त करना चाहिए। जो समाजके सचित धनको समान वितरण द्वारा समाजमे समत्व स्थापित करना चाहते हैं, वे अधेरेमे हैं । यदि हम यह मान भी ले कि पूँजीके समान वितरणसे समाजमे समत्व स्थापित होना सम्भव है, तो भी यह आशका निरन्तर बनी रहेगी कि प्रत्येक व्यक्तिमे बुद्धि, क्षमता और शक्ति पृथक्-पृथक् तीर्थंकर महावीर और उनकी देशना ५९३ ३८

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