Book Title: Sanatkumar Chavda Punyasmruti Granth
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 646
________________ व्यक्ति और समाज : अन्योन्याश्रय सम्बन्ध ___व्यक्तियोंके समूह और उनके सम्बन्धोसे समाजका निर्माण होता है । व्यक्ति अनेक सामाजिक समहोका सदस्य होता है, जो कि उसके बीच पाये जाने वाले सम्बन्धोको प्रतिबिम्बित करते हैं। व्यक्तिके जीवनका प्रभाव समाजपर पडता है। व्यक्ति अपने व्यवहारसे अन्य सदस्योको प्रभावित करता है और अन्य सदस्योके व्यवहारसे स्वय प्रभावित होता है । अत व्यक्तिकी समस्त महत्त्वपूर्ण क्रियाएं एव चेतनाकी अवस्थाएँ सामाजिक परिस्थितियोमे जन्म लेती हैं और इन्होसे सामाजिक व्यक्तित्वका निर्माण होता है। ___ व्यक्ति और समाज एक ही वस्तुके दो पहलू हैं । अनेक व्यक्ति मिलकर समाजका गठन करते हैं। उन व्यक्तियोकी विचार-धाराओ, सवेगो, आदतो आदिका पारस्परिक प्रभाव पड़ता है। अत सक्षेपमे यह कहा जा सकता है कि व्यक्ति और समाज इन दोनोका अन्योन्याश्रय सम्बन्ध है । व्यक्तिके बिना समाजका अस्तित्व नही और समाजके अभावमे व्यक्तिके व्यक्तित्वका विकास सम्भव नही । आर्थिक समानता, न्यायिक समानता, मानव समानता, स्वतन्त्रता आदिका सम्बन्ध व्यक्तियोके साथ है। व्यक्तिगत दक्षता समाजको पूर्णतया प्रभावित करती है । समाज-गठनके सिद्धान्तोमे धर्म, सस्कृति, नैतिक सिद्धान्त, कर्तव्य-पालन, जीवनके आदर्श, काम्य-भोग आदि परिगणित हैं। अतएव सुखी, सम्पन्न और आदर्श समाजके निर्माण हेतु वैयक्तिक जीवनकी पवित्रता और आचारनिष्ठा भी अपेक्षित है। सामान्यत धार्मिक सस्कार और नैतिक विधि-विधान व्यक्तिके व्यक्तित्वको परिष्कृत करनेके लिये आवश्यक है । जिस समाजके घटक व्यक्ति सच्चरित्र, ज्ञानी और दृढसकल्पी होगें, उस ससाजका गठन भी उतना ही अधिक सुदृढ होगा। व्यक्तिके समाजमे जन्म लेते ही कुछ दायित्व या ऋण उसके सिरपर आ जाते है, जिन दायित्वों और ऋणोको पूरा करनेके लिये उसे सामाजिक सम्बन्धोके बीच चलना पडता है। शारीरिक, पारिवारिक और सामाजिक सम्बन्धोका निर्वाह करते हुए भी व्यक्ति इन सम्बन्धोमे आसक्त न रहे । जीवनसे सभी प्रकारके कार्य करने पड़ते है, पर उन कार्योंको कर्तव्य समझकर ही किया जाय, आसक्ति मानकर नही । यो तो वैयक्तिक जीवनका लक्ष्य निवृत्तिमलक है। वह त्यागमार्गके बीच रहकर अपनी आत्माका उत्थान या कल्याण करता है । जीवनको उन्नत और समृद्ध बनानेके लिये आत्मशोधन करता है । क्रोध, मान, माया, लोभ आदि विकारोको आत्मासे पृथक् कर वह निष्काम कर्ममे प्रवृत्त होता है। अत व्यक्ति और समाज इन दोनोका पर५९६ तीर्थंकर महावीर और उनको आचार्य-परम्परा

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