Book Title: Samudrabandh Ashirvachan
Author(s): Jinsenvijay
Publisher: ZZ_Anusandhan

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Page 3
________________ 14 अनुसंधान-२२ श्रीमान महिपालकुं श्रीजालंधरनाथ रछ्या आसिर्वचन ।। छप्पय ॥ तीन नयन छवि गयत(न), सयन जितमयन विकटसर, जटाजूट अवधूत, भेख आलेख डिगांबर । सिंघल दोउ गेल, भाल अध चंद सुहंकर, भस्म अंग सिर गंग, उमयपति इश्वर अमर । जलंधरनाथ जगनाथ जगपति देवनाथ संकट हरें, लाडूनाथ कविराज दीपत, मानराज मंगल करें ॥३॥ पुन: छप्पय । जग संतां प्रतिपाल, भाल अधचंद बिराजत, गिरतनया अरधंग, गंग प्तिर ऊपर छाजत । जटा मुगटभरभार. वाहन बेंल दिवाजत, बाघंबर तरसूल, डमरु धुनि घन गाजत । जालंधरनाथ विभूनाथ जटधर देवनाथ सेवत चरन । दीपविजय कविराज राजत मानराज मंगल करन ||४|| अथ महामंदिर श्रीकृष्णदेव स्तुति रछ्या आसिरवचन । छप्पय : गोवरधनधर अधर, अमरनरसेवत सेवत पदकज, गोपनंद घनबरन, भरन जगचरन सरन भज । मोर मुगट छबि लसत नसत सब दुरित विहंडन, जयजयजय जगतिलक, तिलक पुनि जदुकुलमंडन । वसुदेव नंदन कवि दीप राजत जगत सब संकटहरन, मानसिंह महिपालज्युं पें सकल कुसल मंगल करन ॥५॥ . २. रक्षा । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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