Book Title: Samudrabandh Ashirvachan
Author(s): Jinsenvijay
Publisher: ZZ_Anusandhan
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अनुसंधान-२२ अथ मोतीदाम छंद ।। त जग सूरज तेज प्रमांन, नमे जस आन बडें महिरान । बडी जस कीरत उज्जल लाज, कहावत सांच गरीब निवाज ||१६ भयो जगपालन तुं नरनाह, जयो अनपूरन पूर अगाह । झरें मदपूर बडे गजराज, गजें मनु साम घटा घन गाज ॥२|| घटाघट अश्वतणी खुर ताल, झगामग बीज जिसी करवाल । अरी सब भाज गए दह वट्ट, भयो जय मंगलके घहघट्ट ।।३।। सदानित जीत घुरंत निसांन, हुओ बखते सगुनी गुनजान । कवीजन आस तणो तरुराज, रवी ससि मेर समो वड साज ॥४|| कहावत हिंदनको सुलतान, दधी (दली?) लग आंन अखंड प्रमान । अनोपम राजकुली वडनूर, बहो चीरजीव तपो जगसूर ॥५॥ रखें सुर छप्पन कोटि सदाय, करें सुर तेतिस कोडि सहाय । गुमानतणां सुत मांन नरेस. तपो तव राज सदा सुविसेस ॥६॥ धरा प्रतिपालन नेक कहाय, हुओ बजमाल सवाय सवाय । सदा दीप विजै कविनाम, कह्यौ इह छंद सुमोत्तिय दाम ।।७।।
___ अथ कवित ॥३१॥ छत्रि सब बंसमें राठोड बंस सूरवीर,
गुमानकुल सिंधु मुगता अदभूतीको प्रबल प्रचंड जस तेरो देस देसनमें,
रूप कांमदेव सो भूषन कनक मोतीको । सूरवीर दान मांन दीपे जस खाग ताग,
तो में सुभ लच्छन हे सुंदर सपूतीको, दीप कविराज आज मान महीपाल दीपें,
तेरे भुज डंडन पर मंडन रजपूतीको ॥२०॥
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