________________
24
अनुसंधान-२२ अथ मोतीदाम छंद ।। त जग सूरज तेज प्रमांन, नमे जस आन बडें महिरान । बडी जस कीरत उज्जल लाज, कहावत सांच गरीब निवाज ||१६ भयो जगपालन तुं नरनाह, जयो अनपूरन पूर अगाह । झरें मदपूर बडे गजराज, गजें मनु साम घटा घन गाज ॥२|| घटाघट अश्वतणी खुर ताल, झगामग बीज जिसी करवाल । अरी सब भाज गए दह वट्ट, भयो जय मंगलके घहघट्ट ।।३।। सदानित जीत घुरंत निसांन, हुओ बखते सगुनी गुनजान । कवीजन आस तणो तरुराज, रवी ससि मेर समो वड साज ॥४|| कहावत हिंदनको सुलतान, दधी (दली?) लग आंन अखंड प्रमान । अनोपम राजकुली वडनूर, बहो चीरजीव तपो जगसूर ॥५॥ रखें सुर छप्पन कोटि सदाय, करें सुर तेतिस कोडि सहाय । गुमानतणां सुत मांन नरेस. तपो तव राज सदा सुविसेस ॥६॥ धरा प्रतिपालन नेक कहाय, हुओ बजमाल सवाय सवाय । सदा दीप विजै कविनाम, कह्यौ इह छंद सुमोत्तिय दाम ।।७।।
___ अथ कवित ॥३१॥ छत्रि सब बंसमें राठोड बंस सूरवीर,
गुमानकुल सिंधु मुगता अदभूतीको प्रबल प्रचंड जस तेरो देस देसनमें,
रूप कांमदेव सो भूषन कनक मोतीको । सूरवीर दान मांन दीपे जस खाग ताग,
तो में सुभ लच्छन हे सुंदर सपूतीको, दीप कविराज आज मान महीपाल दीपें,
तेरे भुज डंडन पर मंडन रजपूतीको ॥२०॥
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org