Book Title: Sammetshikhar Giri Ras
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: ZZ_Anusandhan

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Page 4
________________ 44 पहिली घाटी चढी करी ए सीतानालै विश्राम स्नान करी निरमल जलै ए पावन करवो अंग धोई निरमल धोतीया ए आगे चढणो उतंग अधिष्ठायक तीरथतणी ए पूजेवि शासनदेवि शासनदेवि सानिधि करी ए पूरै मनोरथ हेवि केसर चंदन घसि भला ए मृगमद नै घनसार वीसै ट्रंक जुहारियै ए सफल गिंणो अवतार जव अक्षत पुष्प अभिनवा ए बरक रुपेकै कराय श्रीफल पूगीफल घणा ए कुसुम सुगंध चढाय पांचूं अभिगम साचवूं ए पूजुं पारसनाथ स्नात्र महोच्छव नवनवा ए खरचो संपति साथ सहसफणो तेवीसमो ए मनमोहन महाराज भवियण वंदै भावसुं ए सारै आतमकाज सजलकुंड शोहामणो ए पासें पगल्या जिन वीस ते देखी मन गहगह्यो ए प्रणमूं भाव जगीस फेरी देवो जिनबिंबनी ए आरती उतारुं आय सांहमी मिल रातीजगो ए राश भास गुण गाय दुहा ॥ समेतशिखर ए तीरथै महोच्छव करियै अनेक जन्म सफल करिवा भणी बाधी हृदय विवेक इहां वीसै जिन आवीया मास भक्त तप धार ए जिन ए गिरि उपरै सीधा भविहितकार अनुसंधान - २२ शि० १० शि० शि० ११ शि० शि० १२ शि० Jain Education International ढाल २ । तुमे चेतो रे चेतो प्राणिया ए देशी ॥ जिन नगरी जिनज़ी जनमिया ते वरणबूं उधा (दा) र । एहि ज जंबूद्वीप मै भलो दक्षिण रे एह भरत मझार क ॥१॥ For Private & Personal Use Only शि० १३ शि० शि० १४ शि० शि० १५ शि० शि० १६ शि० शि० १७ शि० शि० १८ www.jainelibrary.org

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