Book Title: Sammetshikhar Giri Ras
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: ZZ_Anusandhan
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीगुलाबविजय-विरचित श्रीसमेतशिखर गिरि रास . सं. विजयशीलचन्द्रसूरि वीस तीर्थंकरोना निर्वाण कल्याणक थकी तथा असंख्य साधकोना सिद्धिगमन थकी पावन बनेल पर्वत-तीर्थ श्रीसमेतशिखरगिरि ए जैन संघर्नु अत्यंत पवित्र, मान्य अने आराध्य तीर्थ छे. आ तीर्थनी गुणगाथा वर्णवतो तेमज अहीं थयेल शामळिया पार्श्वनाथनी प्रतिष्ठाना ऐतिहासिक बनावनी स्मृति वर्णवतो एक नानकडो रास, तपगच्छीय मुनि गुलाबविजयजीए वि.सं. १८४७मां रचेलो, ते अत्यारे मारी पासे उपलब्ध एक प्रतिने आधारे संपादित करीने अत्रे रजू करवामां आवे छे. रासनी छ ढाल छे. प्रथम ढालमां पालगंज राज्य तथा तेना राजानो उल्लेख (कडी ९-१०) मळे छे. ते पछीनी कडीमां मधुवन, पहिली घाटी, सीतानाल ए भौगोलिक नामो आवे छे. १६मी कडीमां सहस्रफणा पारसनाथनो उल्लेख छे, अने १७मी कडीमां सजल कंड-जल भरेल कुंड अने तेनी पासे वीस जिननां पगल्यां-पगलांनो ऐतिहासिक उल्लेख थयो छे. भोमियाजीनो क्यांय निर्देश नथी; शासनदेवी-तीर्थनी अधिष्ठायक - एम (कडी १२) उल्लेख छे. संभवतः भोमियाजीना प्राकट्य पूर्वेनी आ रचना छे. बीजी ढालमां आ तीर्थे मोक्ष पामनारा २० तीर्थंकरो तथा तेमनी नगरीनां नामो वर्णवेल छे, तो त्रीजी ढालमा ते पैकी कया तीर्थंकर कया दिवसे निर्वाण पाम्या तेनं वर्णन छे. ढाल ४मां कया जिन साथे केटला साधु सिद्ध थया तेनी विगत आपवा साथे तेमना निर्वाणस्थलरूप ढूंक-कूटटेकरीनां नामो पण आपेल छे. पांचमी ढालमां, वि.सं. १८२५ मां, तपगच्छपति विजयधर्मसूरिना राज्ये ओसवालवंशीय श्रावक शाह सुकालचंदे, अहीं देरासर कराव्यु अने तेमां माघ शुक्ल पक्षे शामळिया पार्श्वनाथ प्रभुनी प्रतिष्ठा करावी - ते ऐतिहासिक घटना- सुस्पष्ट बयान आपेल छे. साथे ज, ते श्रावके वीसे ढूंक एटले के Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुसंधान - २२ तीर्थनो नवो उद्धार कराव्यानी पण नोंध करेल छे. आ सुकालचंद एटले जगतशेठ खुशालचंद एम नीचेना सन्दर्भ थकी समजाय छे : 42 "आ समये वि.सं. १८२५ ना महा सुदि ५ना रोज जगतशेठ खुशालचंद वगेरे समेतशिखर महातीर्थ उपर तथा तळेटीमां मधुवनमां नानां मोटा जिनमन्दिरो बनावी तेनी भ. विजयधर्मसूरिना हाथे प्रतिष्ठा करावी हती. (मो.बा.फ.नं. ३३ तथा समेतशिखररास ) " ( - जैन परंपरानो इतिहास - ३, पृ. ११०, त्रिपुटी महाराज अमदावाद - ई. १९६४) ढाल ६मां तीर्थभक्ति-वर्णन, अने ७मां प्रशस्तिवर्णनमां संवत् १८४७मां अषाढ वदि १०ना विशालानगरीमां वा. ऋद्धिविजय शिष्य भावविजय शिष्य पं. मानविजय शिष्य गुलाबविजये आ रास रच्यानो सन्दर्भ छे. आ रास अंगे ( मध्यकालीन ) ) 'गुजराती साहित्य कोश' मां 'गुलाबविजय' ना अधिकरणमां नोंध निर्देश मळे छे, पण ते मुद्रित होवानुं सूचन नथी, तेथी अहीं तेनुं प्रकाशन थाय छे. क्यांय मुद्रित होवानुं कोईना ध्यानमां होय / आवे तो अवश्य सूचित करे. आ रासनी प्रति ७ पत्रोनी छे. प्रति संभवतः १९मी सदीमां लखायेली जणाय छे. मूळ कृति गुजराती भाषानी होय, तेमां मारवाडी जबाननी छांट तो भळी छे ज; ते उपरांत बंगाली बोलीनी छांट पण जोवा मळे छे : पूरब, निरबाण इत्यादि पदो द्वारा. बंगाल- प्रदेशमां आ प्रति लखवामां आवी होय तो बनवाजोग छे. X श्रीगुरवे नमोस्तु || अथ श्री शिकरजीरो राश लिखि || दूहा : सांवलिया श्रीपासजी पणमवि व (च)रण जिणंद । थुणुं रास सुरतरुसमो सीखर समेत गिरिंद ||१|| महीयल मै तीरथ घणा गिणतां न लहूं पार | ऊर्द्ध अधो मध्यलोक मै समेतसिखरगिरि सार ॥२॥ ऋद्धि वृद्धि सुखसंपदा - दायक दीठा होय । अष्ट सिद्धि नव निधि जप्यां इण सम अवर न होय || ३ || ― Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ January-2003 43 सिव पाम्या वीसै प्रभू सीधा साधु अनंत । आगलि वलि अति सिझस्यै वर्धमान प्रवदंत ॥४॥ भवउदधि तवा भणी एह शिखरगिर नाव भव्यजीव मिलकर सदा यात्र करै शुभ भाव ॥५॥ इणही ज जंबूद्वीपमै दक्षिण भरत अभिरांम । धन धन पूरब देशमै छै तीरथ गुणधाम ॥६॥ . देशी : नीविया की ॥ साचविय विधि इण परै ए करियें आतम शुद्ध शिखरगिरि वंदियै ए निरमल चित्त धरि बुद्ध शिष० १ भवियण टोली हिलमिली ए गातां गीत रसाल शिष जय बोलो जिन वीसनी ए पहिरो संघपतिमाल । शिष २ तन मन वयण जे वसीकरे ए गोपवो इंद्री पंच शि० धरमी व्रत आराधता ए वाक्य मधुरता संच शि० ३ निज घरथी जब नीसरे ए जात्रा करणनै जाय शि० छेहरि नित जै पालतां ए जनम सफल शुद्ध थाय शि० ४ ईर्याय पंथ सोधता ए पैदल चढणो जोय शि० सर्दहणा गुरुदेवनी ए समकितधारी होय । कपट कदाग्रह परिहरो ए टालो मिथ्यामति संग । सामायिक सुभ भावथी ए ब्रह्मव्रत धार सुचंग शि० ६ भूमि संथारै सूवणो ए सचित्त करो परिहार करीयै नित्य एकासणो ए आदरो एकल आहार शी० ७ तीरथ देखी करौ नूंछणा ए कीजै मन उल्लास शि० मोतियां थाल वधावियै ए प्रगट कीजै पुन्यरास शि० ८ वस्ती वसै पालगंजनी ए वरतें सदा जिनधर्म शि० न्याए राज चोसालसूं ए राजा करै राज्य कर्म शि० ९ दियै प्रदक्षिणा गिरि तणी ए मधुवन कीजै मुकाम शि० शि० ५ ২ি০ शि० Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 44 पहिली घाटी चढी करी ए सीतानालै विश्राम स्नान करी निरमल जलै ए पावन करवो अंग धोई निरमल धोतीया ए आगे चढणो उतंग अधिष्ठायक तीरथतणी ए पूजेवि शासनदेवि शासनदेवि सानिधि करी ए पूरै मनोरथ हेवि केसर चंदन घसि भला ए मृगमद नै घनसार वीसै ट्रंक जुहारियै ए सफल गिंणो अवतार जव अक्षत पुष्प अभिनवा ए बरक रुपेकै कराय श्रीफल पूगीफल घणा ए कुसुम सुगंध चढाय पांचूं अभिगम साचवूं ए पूजुं पारसनाथ स्नात्र महोच्छव नवनवा ए खरचो संपति साथ सहसफणो तेवीसमो ए मनमोहन महाराज भवियण वंदै भावसुं ए सारै आतमकाज सजलकुंड शोहामणो ए पासें पगल्या जिन वीस ते देखी मन गहगह्यो ए प्रणमूं भाव जगीस फेरी देवो जिनबिंबनी ए आरती उतारुं आय सांहमी मिल रातीजगो ए राश भास गुण गाय दुहा ॥ समेतशिखर ए तीरथै महोच्छव करियै अनेक जन्म सफल करिवा भणी बाधी हृदय विवेक इहां वीसै जिन आवीया मास भक्त तप धार ए जिन ए गिरि उपरै सीधा भविहितकार अनुसंधान - २२ शि० १० शि० शि० ११ शि० शि० १२ शि० ढाल २ । तुमे चेतो रे चेतो प्राणिया ए देशी ॥ जिन नगरी जिनज़ी जनमिया ते वरणबूं उधा (दा) र । एहि ज जंबूद्वीप मै भलो दक्षिण रे एह भरत मझार क ॥१॥ शि० १३ शि० शि० १४ शि० शि० १५ शि० शि० १६ शि० शि० १७ शि० शि० १८ Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 45 January-2003 जनमै रे जिनराज सुरपति आवै रे सब महोच्छव काज के त्रिभुवनपति तिलकमा रे उगति कै सुख साज क ||२|| (?) अजित अयोध्या जिन पुरी रे सावथी संभवस्वांम वनिता अभिनंदन प्रभू सुमति प्रणमूं रे कौसल्या ठाम क ॥३॥ कौसंबी जिन पदमप्रभू रे वणारसियै सुपास चंदाप्रभू चंद्रावती सुविध जनमे रे काकंदी मांहि कै ॥४॥ शीतल जिन भद्दिलपुरै रे सींहपुरी श्रेयांस कंपिलपुर विमलनाथजी रे अनंत अयोध्या रे लह(हो) अवतंस ||५|| रत्नपुरी मै धरमजिनेसर संतिनाथ गजगाम कुंथु गजपुर सहरमे रे हथिनागे अटारमो स्वाम क ||६|| मल्लिनाथ मिथिलाधिपती रे मुनिसुव्रत राजगृह राय महिलायै नमिनाथज़ी रे पासस्वामी रे बणारसी राय कै ॥७॥ यां नगर्यां प्रभू, जनम लह्यो रे वीस प्रभू जगदीस ए गिरि सहू शिव पामिया रे काउसगध्यान वीस महीश कै ॥८॥ ढाल ३ । आदर जीव० ए देशी ।। श्रीवीस जिनेशर सीधा इण गिरि गणधर साधु अनंतजी इण ठामै वलि सीझसी अनंता भासै इम भगवंतजी श्रीवीसजिनेशर० १ चैत्र सुदी पंचमी दिन सीधा अजित संभव जिनरायजी उज्वल ध्यान धरी काउसगे अजित (समेत ?) शिखर गिरि आयजी . .. .. श्री० २ अभिनंदन जिन चोथा स्वामी अष्टमी सुदि वैशाखजी इण ठामै शिव संपति पामी करी आगमनी साखजी श्री० ३ Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 46 - अनुसंधान-२२ पांचमा सुमतिजिनेशर साहिब चैत्र शुकल नवमी जाणजी मिगसर वदि इग्यारस सीधा पद्मप्रभू निरबाणजी श्री० ४ फागुण वदि सातमी दिन ईहां सातमा श्रीसुपासजी चंद्रप्रभू भादव वदि सात्युं सीधा सकल विलासजी श्री० ५ सुविधिनाथ भादौ सुदि नौमी करी काउसगध्यानजी इण तीरथ महिमा बहु जाणी लह्यो परम कल्याणजी श्री०६ जयता सीतल सीवो (?) दसमा शीतलनाथजी बदि बैशाखे द्वीतिया दिवसै ध्यावै काउसग साथजी श्री० ७ श्रेयकरी महियलमै विचरै इग्यारमो श्रीश्रेयांसजी श्रावण वदि दिन तीज जिनेशर लह्यो मुक्ति अवतंसजी श्री० ८ विमलनाथ अषाढ वदि दिन सप्तमीयें शुभ वारजी समेतशिखर गिरि काउसग्ग धरिकै पाम्या मुक्ति उदारजी श्री० ९ चउदसमा श्रीअनंत जिणंदा मेघाडंबर ढूंकजी सुदि चैत्री पंचमी दिन सीधा धरि मन ध्यान अचूकजी श्री० १० धर्मनाथजी धर्म वधार्यो वारी भव जगकूपजी ज्येष्ट सुदी पंचमी इण ठांमै पांम्यां सिद्ध स्वरूपजी श्री० ११ अचिरानंदन चंदन सीतल संतनाथ सुखकारजी तेरस ज्येष्ट वदीने दिवसै शिवसुख पाम्या सारजी श्री० १२ वदि वैशाखै पडिवा दिवसै कुंथुनाथ जिनरायजी अविचल पद पाम्या इहां आवी वंदु तेहना पायजी श्री० १३ सुदि मृगसिर दशमी दिन सीधा श्रीअरनाथ महंतजी फागुण सुदि बारस दिन कीधो मल्लिनाथ भवअंतजी श्री० १४ ज्येष्ट वदी नवमी मुनिसुव्रत सीधा इण गिरि ठामजी नमिजिन दशमी.. वदि वैशाखै करियै तास प्रणामजी श्री० १५ पारस आस सफल करो मेरी सांवलिया पास जिणंदजी.. श्रावण शुदि अष्टमी दिन पाम्या परम पदारथ छंदजी श्री० १६ Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ January-2003 गिरवो तीरथ महिमा मोटी (टो) एहना गुण है अपारजी विन केवलियै कुण कहिवायै उत्तम तीरथ सारजी ढाल ४ चोपईनी ॥ गुणरयणायर एह सुठाण भिन भिन साधूनी संख्या जाण शिखरै श्रीजिन साधु संथार जे सीधे ते सुणो उधा (दा) र सिद्ध वर कूटै एक हजार तीरथमहिमानें वरताय पदपंकज प्रणमूं नितमेव बीजा जिन संगै अणगार सीधा एह शिखरगिरि आय साधु सहस संग संभवदेव तिण करवी इण तीरथ सेव साधु सहस चोथा जिनराय आनंद कूटै शिवपद पाव सिद्धक्षेत्र ए उत्तम जाण अजरामर दाता सुखखाण अविचल टूकै सुमतिजिणंद सहस साधु संगै सुखकंद शुभ कैलाशशिखर शिवठाम त्रिविधै पूजी करूं प्रणाम साधु तीहोत्तर सीधा साथ मोहनकूट पदमप्रभूनाथ पुहवीनंदन स्वामी सुपास साधु पांचसै टूक प्रभास चंद्रप्रभू जिन वंदो वली ललीतकूट ईशानें वली थिरपद सहस संघातें लहै शिवपद पामी मन गहगहै सुविधि सुप्रभकूट वखाण मुनि सहस्र संगे लीधो निरबाण तेहना नित प्रति वंदो पाय ते दुरगति यली शिवगति जाय ८ वलि शीतल श्रेयांस सुखकार विद्युतकूट - संकुलकूटै सार साधु सीधा एक हजार प्रणमो मन घरी भाव अपार विमल अमल पद तीजै लहै निरमलकूट तीरथ इम उहै साधु जिन संग षटशत जाण ते वांद्यां होय करमकी हांण अनंतनाथ चौदमा जिनराय सातसे संगै मुक्तिपद पाय स्वयंभूकूट पर थयो निरबाण वंदो तीरथ ते हित आण १. चौथी पंक्ति प्रतमां नथी लखी. 47 १ श्री० १७ ४ ६ ७ १० ११ Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 48 अनुसंधान- २२ धर्मनाथ जिन शासन देव दत्तवरकूट तिण काजै सेव ऋषी अष्ट संघातें मुक्तिपद लह्यो तिण कारण निरबाणभूमी कह्यो १२ शांतिनाथ नवसै मुनि संग तिण कारण ए तीरथ करो कूट प्रभासै लह्यो पद रंग स्वर्गपुरीको सै दीवडो ज्ञानधरकूटै अणसण लीध कुंथुनाथ एह गिरिवर सीध सहस साधु संगें शिव गया तेहतणा जग नाम ज थया मुक्ति लहै श्रीअर सुखकार सहस साधु संगे परिवार नाटक नाम कूट ते ठाम बंदु ए गिरि उत्तम धाम परमदयानिधि मल्लीनाथ साधु पांचसै सीधा साथ जाणी ए गिरि उत्तम ठांण सबल कूट भूमी निरबाण करुणानिधि मुनिसुव्रत ईस दस शत साथै साधु जगीस निर्जरकूट कियो विश्राम इण गिरि पाम्या अविचल धाम प्रणमुं नमिजिन चित्त उमंग सहस एक मुनिवर ले संग कूट मित्रधर सोह्रै भलो ते निरबाण त्रिभुवन तिलो संगें श्रीसांवलिया पास तेतीस केवली कीधा उल्लास स्वर्णभद्रकूटै तज देह तिणथी मोटो गिरिवर एह अविचल पद पर्वत अवतार दुर्गति तिमिरहरण दिनकार नित नित प्रणमुं हुं तिहुंकाल फल्या मनोरथ मंगलमाल श्रावक श्राविका साधु निग्रंथ समेतशिखरगिरि मुक्ति सुपंथ ध्यावै पावै अजपाजाप दूर करै सहु संचित पाप ढाल ५ नमो रे श्री० ए देशी ॥ सोहै गुणमणिलाल शिखरगिरि एहवो सुथानक जगमै न कोई समेतशिखरगिरि भावै वंदो भेट्या मेटै फेरन भवका प्रवर तीरथ शुचि एह रे भवारण मुक्ति एह रे वंदत नंदो चिरकाल रे पूज्यां पाप पखालै रे १३ १४ १५ १६ १७ १८ १९ २० २१ समे ०१ समे०२ Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 49 January-2003 पूरब भवें पाप बंधी आया इह भव बांध्या होय रे ते आलोयणथी छूटेवा सूत्रानुसारें जोय रे समे०३ वीसस्थानिक इहां आवीनें तप उच्चारण कीध रे विधिसहित किरिया करै तीर्थंकर गोत्र वलि लीध रे समे०४ पूरब पछिम दक्षिण उत्तर ट्रॅक सोहै मध्य भाग रे कूण विदिस प्रतें जइ छै नमुं हूं चित्त धरि राग रे समे०५ धन धन तपगच्छ राजवी श्रीविजयधरमसूरिंद रे तेह राजें कुलमंडणो तसु श्रावककुलचंद रे समे०६ ओसवंश बिभूषण कुल में संघवी सकालचंद साह रे देहरो कराव्यो गिरिसेहरो चित्ते आणी उमाह रे स० ७ संवत् अढारें पचवीस में माह सुकल शुभ मास रे सांवलिया तेवीसमो __थापी श्री प्रभू पास रे स० ८ ट्रंक रलियामणो ऊपरै कीg देहरो वीसुं ठाम रे नवो उधार तेणे करायो राखी टेक अरु नाम रे स० ९ आठ जोयण विस्तारमै तीरथ तेह प्रमाण रे ऊचो जोयण पुण एक छै अति उत्तम सुथांन रे स०१० कदली आम्रतरु घणां जिहां कर जोडी सुरवेल रे झाड झंगी अति मोटडी सुर मांडै रंगरोल रे नदियां नाला सोहामणा झरै नीझरणा अनेक रे जात्रीजन पूछे उतर्या जल वरसै ए टेक रे स० १२ ढाल ६ मेंदी रंग लागो - ए देशी ॥ स्वर्ग अपवर्ग ते सही समेतशिखर गिरि एम, तीरथ रंग लागो नैन सलूनें निरखने लागो रंग मेंहदी जेम तीरथ० मन उलट धरी में करी जात्रा शुद्ध करी भाव ती० चिहं दिस तीरथ निरखिया रे हुवो मन अति उछाह ती० २ जाई जुई मोगरा रे चंदनतरु चंपो वेल ती० स०११ Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 50 अगर सुगंध महकै घणो रे सोहै शिखरगिरि सैल ती० खालनाल खोअल वडी रे, उत्तंग मगन सेंजडी रे विकट मनोहर वेड ती० परबत पद रहेड ती० जंबू जंभीरी सहकार ती० कोकिल करै टहुकार ती० मधुवन केरे मझार ती० वरत्या जय जयकार ती० सुख सहित भरपुर ती० करम कीया चकचूर ती० नवपल्लव तरु शोभता रे तोता चातक मधुर स्वरै रे संघ सज्जन सह उतर्या. रे पूरै मनोरथ मन तणा रे सयण सनेही निज घरे रे संघ सहू घर आवियो रे ढाल ७ ॥ अनुसंधान - २२ इण कलिकालें परचा पूरण श्रीसमेतशिखरगिर दिनकर इंद चंद दिणंद सबै मिल सुर नर मुनिवर संघ चतुर्विध ग्रहगण मांहै मोटो सूरज मंत्र जंत्र घणाई जगमें सकल सुगिरिवर अधिपति समय परंपराने अनुसारे अनुभव वृद्धि रस चारव्यो जी ४ ५ रमणअ ( मणुअ ? ) तिरय सुरगति अधिकी, सहुथी मुक्ति वखांणी जी मानसरोवर उत्तम पंखी अवर ते समधा(?) जाणीजी ए तीरथ जिण नहि वंद्या पूज्या ते दुर्भाग्य जन प्राणी जी पूजो (जे) वंदै नर भव भावै विनय अधिक चित्त आणीजी जिनमत सूत्र सिद्धांत चरित्रै. जिन पंचांगी माहैं जांण्योजी जूजूवा ते दिन श्रीजिन सीधा मुनि संग संबंध वखांण्यो जी कुमती ते पिण सुमती वरज्यो शुद्ध श्रद्धा चित धरज्यो जी देव गुरु धर्म तत्त्वें लहीज्यो श्रद्धा ते अनुसरज्यो जी संकट चूरण मारी जी तेजैं शिव अधिकारी जो सुरकुमार हु अमारी जी (?) भवियणनें हितकारी जी तिम ए तीरथ भाष्यो जी वडो नवकार ज दाष्यो जी मेरु धीरज तेणें राख्यो जी ६ ७ ८ Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ January-2003 51 संवत अठारै सेंतालीसें दशमी वदि असाह(ढ?) प्रसीधो जी श्रीसमेतशिखरगिरि रास रूवो नगरी विसालोमें कीधो जी. ९ संघ चतुर्विध भवियण हेतै भणतां शिवसुख लीधोजी शुभ भावें संवेग धर सुणस्यै जात्रा सफल तसु सीधो जी १० नमें नेन गगन में भानु(?) तपगच्छ तेजें साजें जी सुरतरु जेहवा प्रगट्या सूरि श्रीविजयसेनगुरुराज जी ११ वाचक श्रीऋद्धिविजय गुरु श्रीभावविजय गुरु गाजैजी तास सीस पंडित गुणजलनिधि मानविजय गुरु छाजैजी तसु पद पंकज भमर तणी पर गुलाबविजय गुण गाव्यौजी गायो रास शिखरगिरि केरो सुणतां अतिसुख पायो जी १३ रोमरोमांचित हरष धरी सब संघ सुणी मन भायो जी जे भवियण भणस्यै गुणस्यै तस घर नवनिधि पायो जी १४ इति श्री शीषरगिरराश संपूर्णम् ॥ श्रीसुभं भवतु श्रीरस्तु कल्याणमस्तु ।। शब्दकोश ढाल कडी संघपतिमाल यात्रासंघ काढे ते संघपति, तेने पहेराववानी माला १ ४ छेह रि छ'री' (एकाहारी, भूमिसंथारी, पादचारी, ब्रह्मचारी, शुद्ध सम्यक्त्वधारी, सचितपरिहारी) १ ५ ईर्या गति-चालवानी किया सर्दहणा श्रद्धा १ ८ नूंछणां लूंछणां-ओवारणां, (रूपानाणां धरी उडाडवानी क्रिया) Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ h अनुसंधान-२२ 14 ar or वरख .... 1 15 अभिगम भगवानने जोईने केटलुक न करवं, केटलुक करवू सांहमी सार्मिक सीधा सिद्ध थया सीझसी सिद्ध थशे केवलियै केवलज्ञानीए 5 3 आलोयण प्रायश्चित्त 6 4 खोअल - 6 4 वेड वीड/वगडो 64 रहेड समय शास्त्र/सिद्धांत मणुअ तिरय मनुष्य तिर्यंच or m m m 5 w w w og * - ram >> >> >> >> I