SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 8
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 48 अनुसंधान- २२ धर्मनाथ जिन शासन देव दत्तवरकूट तिण काजै सेव ऋषी अष्ट संघातें मुक्तिपद लह्यो तिण कारण निरबाणभूमी कह्यो १२ शांतिनाथ नवसै मुनि संग तिण कारण ए तीरथ करो कूट प्रभासै लह्यो पद रंग स्वर्गपुरीको सै दीवडो ज्ञानधरकूटै अणसण लीध कुंथुनाथ एह गिरिवर सीध सहस साधु संगें शिव गया तेहतणा जग नाम ज थया मुक्ति लहै श्रीअर सुखकार सहस साधु संगे परिवार नाटक नाम कूट ते ठाम बंदु ए गिरि उत्तम धाम परमदयानिधि मल्लीनाथ साधु पांचसै सीधा साथ जाणी ए गिरि उत्तम ठांण सबल कूट भूमी निरबाण करुणानिधि मुनिसुव्रत ईस दस शत साथै साधु जगीस निर्जरकूट कियो विश्राम इण गिरि पाम्या अविचल धाम प्रणमुं नमिजिन चित्त उमंग सहस एक मुनिवर ले संग कूट मित्रधर सोह्रै भलो ते निरबाण त्रिभुवन तिलो संगें श्रीसांवलिया पास तेतीस केवली कीधा उल्लास स्वर्णभद्रकूटै तज देह तिणथी मोटो गिरिवर एह अविचल पद पर्वत अवतार दुर्गति तिमिरहरण दिनकार नित नित प्रणमुं हुं तिहुंकाल फल्या मनोरथ मंगलमाल श्रावक श्राविका साधु निग्रंथ समेतशिखरगिरि मुक्ति सुपंथ ध्यावै पावै अजपाजाप दूर करै सहु संचित पाप ढाल ५ नमो रे श्री० ए देशी ॥ सोहै गुणमणिलाल शिखरगिरि एहवो सुथानक जगमै न कोई समेतशिखरगिरि भावै वंदो भेट्या मेटै फेरन भवका Jain Education International प्रवर तीरथ शुचि एह रे भवारण मुक्ति एह रे वंदत नंदो चिरकाल रे पूज्यां पाप पखालै रे For Private & Personal Use Only १३ १४ १५ १६ १७ १८ १९ २० २१ समे ०१ समे०२ www.jainelibrary.org
SR No.229565
Book TitleSammetshikhar Giri Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherZZ_Anusandhan
Publication Year
Total Pages12
LanguageHindi
ClassificationArticle & 0_not_categorized
File Size332 KB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy