SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 9
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 49 January-2003 पूरब भवें पाप बंधी आया इह भव बांध्या होय रे ते आलोयणथी छूटेवा सूत्रानुसारें जोय रे समे०३ वीसस्थानिक इहां आवीनें तप उच्चारण कीध रे विधिसहित किरिया करै तीर्थंकर गोत्र वलि लीध रे समे०४ पूरब पछिम दक्षिण उत्तर ट्रॅक सोहै मध्य भाग रे कूण विदिस प्रतें जइ छै नमुं हूं चित्त धरि राग रे समे०५ धन धन तपगच्छ राजवी श्रीविजयधरमसूरिंद रे तेह राजें कुलमंडणो तसु श्रावककुलचंद रे समे०६ ओसवंश बिभूषण कुल में संघवी सकालचंद साह रे देहरो कराव्यो गिरिसेहरो चित्ते आणी उमाह रे स० ७ संवत् अढारें पचवीस में माह सुकल शुभ मास रे सांवलिया तेवीसमो __थापी श्री प्रभू पास रे स० ८ ट्रंक रलियामणो ऊपरै कीg देहरो वीसुं ठाम रे नवो उधार तेणे करायो राखी टेक अरु नाम रे स० ९ आठ जोयण विस्तारमै तीरथ तेह प्रमाण रे ऊचो जोयण पुण एक छै अति उत्तम सुथांन रे स०१० कदली आम्रतरु घणां जिहां कर जोडी सुरवेल रे झाड झंगी अति मोटडी सुर मांडै रंगरोल रे नदियां नाला सोहामणा झरै नीझरणा अनेक रे जात्रीजन पूछे उतर्या जल वरसै ए टेक रे स० १२ ढाल ६ मेंदी रंग लागो - ए देशी ॥ स्वर्ग अपवर्ग ते सही समेतशिखर गिरि एम, तीरथ रंग लागो नैन सलूनें निरखने लागो रंग मेंहदी जेम तीरथ० मन उलट धरी में करी जात्रा शुद्ध करी भाव ती० चिहं दिस तीरथ निरखिया रे हुवो मन अति उछाह ती० २ जाई जुई मोगरा रे चंदनतरु चंपो वेल ती० स०११ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.229565
Book TitleSammetshikhar Giri Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherZZ_Anusandhan
Publication Year
Total Pages12
LanguageHindi
ClassificationArticle & 0_not_categorized
File Size332 KB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy