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________________ 50 अगर सुगंध महकै घणो रे सोहै शिखरगिरि सैल ती० खालनाल खोअल वडी रे, उत्तंग मगन सेंजडी रे विकट मनोहर वेड ती० परबत पद रहेड ती० जंबू जंभीरी सहकार ती० कोकिल करै टहुकार ती० मधुवन केरे मझार ती० वरत्या जय जयकार ती० सुख सहित भरपुर ती० करम कीया चकचूर ती० नवपल्लव तरु शोभता रे तोता चातक मधुर स्वरै रे संघ सज्जन सह उतर्या. रे पूरै मनोरथ मन तणा रे सयण सनेही निज घरे रे संघ सहू घर आवियो रे ढाल ७ ॥ Jain Education International अनुसंधान - २२ इण कलिकालें परचा पूरण श्रीसमेतशिखरगिर दिनकर इंद चंद दिणंद सबै मिल सुर नर मुनिवर संघ चतुर्विध ग्रहगण मांहै मोटो सूरज मंत्र जंत्र घणाई जगमें सकल सुगिरिवर अधिपति समय परंपराने अनुसारे अनुभव वृद्धि रस चारव्यो जी ४ ५ रमणअ ( मणुअ ? ) तिरय सुरगति अधिकी, सहुथी मुक्ति वखांणी जी मानसरोवर उत्तम पंखी अवर ते समधा(?) जाणीजी ए तीरथ जिण नहि वंद्या पूज्या ते दुर्भाग्य जन प्राणी जी पूजो (जे) वंदै नर भव भावै विनय अधिक चित्त आणीजी जिनमत सूत्र सिद्धांत चरित्रै. जिन पंचांगी माहैं जांण्योजी जूजूवा ते दिन श्रीजिन सीधा मुनि संग संबंध वखांण्यो जी कुमती ते पिण सुमती वरज्यो शुद्ध श्रद्धा चित धरज्यो जी देव गुरु धर्म तत्त्वें लहीज्यो श्रद्धा ते अनुसरज्यो जी संकट चूरण मारी जी तेजैं शिव अधिकारी जो सुरकुमार हु अमारी जी (?) भवियणनें हितकारी जी तिम ए तीरथ भाष्यो जी वडो नवकार ज दाष्यो जी मेरु धीरज तेणें राख्यो जी For Private & Personal Use Only ६ ७ ८ www.jainelibrary.org
SR No.229565
Book TitleSammetshikhar Giri Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherZZ_Anusandhan
Publication Year
Total Pages12
LanguageHindi
ClassificationArticle & 0_not_categorized
File Size332 KB
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