Book Title: Sammetshikhar Giri Ras
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: ZZ_Anusandhan

View full book text
Previous | Next

Page 7
________________ January-2003 गिरवो तीरथ महिमा मोटी (टो) एहना गुण है अपारजी विन केवलियै कुण कहिवायै उत्तम तीरथ सारजी ढाल ४ चोपईनी ॥ गुणरयणायर एह सुठाण भिन भिन साधूनी संख्या जाण शिखरै श्रीजिन साधु संथार जे सीधे ते सुणो उधा (दा) र सिद्ध वर कूटै एक हजार तीरथमहिमानें वरताय पदपंकज प्रणमूं नितमेव बीजा जिन संगै अणगार सीधा एह शिखरगिरि आय साधु सहस संग संभवदेव तिण करवी इण तीरथ सेव साधु सहस चोथा जिनराय आनंद कूटै शिवपद पाव सिद्धक्षेत्र ए उत्तम जाण अजरामर दाता सुखखाण अविचल टूकै सुमतिजिणंद सहस साधु संगै सुखकंद शुभ कैलाशशिखर शिवठाम त्रिविधै पूजी करूं प्रणाम साधु तीहोत्तर सीधा साथ मोहनकूट पदमप्रभूनाथ पुहवीनंदन स्वामी सुपास साधु पांचसै टूक प्रभास चंद्रप्रभू जिन वंदो वली ललीतकूट ईशानें वली थिरपद सहस संघातें लहै शिवपद पामी मन गहगहै सुविधि सुप्रभकूट वखाण मुनि सहस्र संगे लीधो निरबाण तेहना नित प्रति वंदो पाय ते दुरगति यली शिवगति जाय ८ वलि शीतल श्रेयांस सुखकार विद्युतकूट - संकुलकूटै सार साधु सीधा एक हजार प्रणमो मन घरी भाव अपार विमल अमल पद तीजै लहै निरमलकूट तीरथ इम उहै साधु जिन संग षटशत जाण ते वांद्यां होय करमकी हांण अनंतनाथ चौदमा जिनराय सातसे संगै मुक्तिपद पाय स्वयंभूकूट पर थयो निरबाण वंदो तीरथ ते हित आण १. चौथी पंक्ति प्रतमां नथी लखी. Jain Education International For Private & Personal Use Only 47 १ श्री० १७ ४ ६ ७ १० ११ www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 5 6 7 8 9 10 11 12