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January-2003
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संवत अठारै सेंतालीसें दशमी वदि असाह(ढ?) प्रसीधो जी श्रीसमेतशिखरगिरि रास रूवो नगरी विसालोमें कीधो जी. ९ संघ चतुर्विध भवियण हेतै भणतां शिवसुख लीधोजी शुभ भावें संवेग धर सुणस्यै जात्रा सफल तसु सीधो जी १० नमें नेन गगन में भानु(?) तपगच्छ तेजें साजें जी सुरतरु जेहवा प्रगट्या सूरि श्रीविजयसेनगुरुराज जी ११ वाचक श्रीऋद्धिविजय गुरु श्रीभावविजय गुरु गाजैजी तास सीस पंडित गुणजलनिधि मानविजय गुरु छाजैजी तसु पद पंकज भमर तणी पर गुलाबविजय गुण गाव्यौजी गायो रास शिखरगिरि केरो सुणतां अतिसुख पायो जी १३ रोमरोमांचित हरष धरी सब संघ सुणी मन भायो जी जे भवियण भणस्यै गुणस्यै तस घर नवनिधि पायो जी १४
इति श्री शीषरगिरराश संपूर्णम् ॥ श्रीसुभं भवतु श्रीरस्तु कल्याणमस्तु ।।
शब्दकोश ढाल कडी
संघपतिमाल यात्रासंघ काढे ते संघपति, तेने पहेराववानी
माला १ ४ छेह रि छ'री' (एकाहारी, भूमिसंथारी, पादचारी,
ब्रह्मचारी, शुद्ध सम्यक्त्वधारी,
सचितपरिहारी) १ ५ ईर्या गति-चालवानी किया
सर्दहणा श्रद्धा १ ८ नूंछणां लूंछणां-ओवारणां, (रूपानाणां धरी
उडाडवानी क्रिया)
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