Book Title: Samaysundar Ras Panchak Author(s): Bhanvarlal Nahta Publisher: Sadul Rajasthani Research Institute Bikaner View full book textPage 6
________________ दो शब्द श्री भंवरलाल नाहटा ने 'समयसुन्दर रासपंचक' का संपादन कर एक बड़ा उपयोगी कार्य किया है। संपादक ने प्रारम्भ में पाँचों रासों का सार प्रस्तुतकर प्रस्तुत ग्रन्थ को हिन्दी पाठकों के लिए भी सहज ही बोधगम्य बना दिया है । अन्त में रासपंचक में प्रयुक्त देशी सूची भी दे दी गई है। ___ जैन साधु-सन्तों ने लोक-साहित्य की रक्षा के लिए जो महत्त्वपूर्ण कार्य किया, वह अनुपम है। उपदेश देते समय जैन साधु अनेक दृष्टान्त-कथाओं का प्रयोग किया करते थे, जिससे उपदेशों की छाप श्रोताओं के मन पर चिरांकित हो सके। ऐसी अनेक दृष्टान्त-कथाएँ प्रस्तुत रास-पंचक में प्रयुक्त हुई हैं। महोपाध्याय समयसुन्दर द्वारा विरचित इन पाँचों रासों का मेरी दृष्टि में एक विशेष महत्त्व है। इन रासों में जिन लोक-कथाओं का समावेश हुआ है, वे मूल अभिप्रायों ( Motives ) की दृष्टि से अत्यन्त समृद्ध हैं। सर्वप्रथम रास 'सिंहलसुत चौपई' में काष्ठ-पट्ट के सहारे धनवती द्वारा समुद्रतट प्राप्त करने का उल्लेख हुआ है। लोक-कथाओं और कथा Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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