Book Title: Samaya Sara
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 38
________________ कुन्दकुन्द-भारती आगे किस क्रमसे संवर होता है यह कहते हैं -- तेसिं हेऊ' भणिदा, अज्झवसाणाणि सव्वदरिसीहिं। मिच्छत्तं अण्णाणं, अविरयभावो य जोगो य।।१९०।। हेउ अभावे णियमा, जायदि णाणिस्स आसवणिरोहो। आसवभावेण विणा, जायदि कम्मस्स वि णिरोहो।।१९१।। कम्मस्साभावेण य, णोकम्माणं पि जायइ णिरोहो। णोकम्मणिरोहेण य, संसारणिरोहणं होइ।।१९२।। पूर्वमें कहे हुए उन रागद्वेषादि आस्रवोंके हेतु सर्वज्ञदेवने मिथ्यात्व, अज्ञान, अविरतभाव और योग ये चार अध्यवसानभाव कहे हैं। ज्ञानी जीवके इन हेतुओंका अभाव होनेके कारण नियमसे आस्रवका निरोध होता है, आस्रवभावके विना कर्मोंका भी निरोध हो जाता है, कर्मोंका अभाव होनेसे नोकर्मोंका भी निरोध हो जाता है और नोकर्मोंका निरोध होनेसे संसारका निरोध हो जाता है।।१९०-१९२ ।। इस प्रकार पाँचवाँ संवर अधिकार पूर्ण हुआ।। १. हेदू ज. वृ.

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