Book Title: Samaya Sara
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

View full book text
Previous | Next

Page 78
________________ कुन्दकुन्द-भा तम्हा उ' जो विसुद्धो, चेया' सो णेव गिण्हएर किंचि । व विमुंचइ किंचिवि, जीवाजीवाण दव्वाणं ।। ४०७ ।। इस प्रकार जिसका आत्मा अमूर्तिक है वह निश्चयसे आहारक नहीं होता, क्योंकि आहार मूर्तिक है तथा पुद्गलमय है। जो परद्रव्य न ग्रहण किया जा सकता है और न छोड़ा जा सकता है वह आत्माका कोई प्रायोगिक अथवा वैस्रसिक गुण ही है। इससे यह सिद्ध हुआ कि जो विशुद्ध आत्मा है वह जीव अजीव द्रव्यमेंसे कुछ भी न ग्रहण करता है और न कुछ छोड़ता ही है । । ४०५-४०७ ।। आगे कहते हैं कि लिंग मोक्षमार्ग नहीं है। -- १२४ पासंडीलिंगाणि व, गिहलिंगाणि व बहुप्पयाराणि । घित्तुं वदंति मूढा, लिंगमिणं मोक्खमग्गोत्ति ।।४०८ ।। होदि मोक्खमग्गो, लिंगं जं देहणिम्ममा अरिहा । लिंगं मुइत्तु दंसणणाणचरित्ताणि सेयंति । । ४०९ । । बहुत प्रकारके पाखंडिलिंगों अथवा गृहस्थलिंगोंको ग्रहण कर मूढ़ जन ऐसा कहते हैं कि यह लिंग मोक्षका मार्ग है। परंतु लिंग मोक्षका मार्ग नहीं है, क्योंकि अर्हत देव भी देहसे निर्ममत्व हो तथा लिंग छोड़कर सम्यग्दर्शन सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्रकी ही सेवा करते हैं ।। ४०८-४०९ ।। आगे इसी बात को दृढ़ करते हैं. -- विएस मोक्खमग्गो, पाखंडीगिहिमयाणि लिंगाणि । दंसण णाणचरित्ताणि, मोक्खमग्गं जिणा विंति । । ४१० । । जो पाखंडी और गृहस्थरूप लिंग है वह मोक्षमार्ग नहीं है। जिनेंद्र भगवान दर्शन ज्ञान और चारित्रको ही मोक्षमार्ग कहते हैं । । ४१० ।। तम्हा जहित्तु लिंगे, सागारणगारएहिं वा गहिए । दंसणणाणचरित्ते, अप्पाणं जुंज मोक्खपते । ।४११ ।। इसलिए गृहस्थों और मुनियोंके द्वारा गृहीत लिंगोंको छोड़कर दर्शन ज्ञान चारित्रस्वरूप मोक्षमार्ग में आत्माको लगाओ । । ४११ ।। आगे इसी मोक्षमार्गमें निरंतर रत रहो यह उपदेश देते हैं. -1 ५ मोक्खपहे अप्पाणं, ठवेहि 'चेव झाहि तं चेव । तत्थेव विहर णिच्चं, मा विहरसु अण्णदव्वेसु । । ४१२ ।। १. दु । २. च्चेदा । ३. गिण्हदे । ४. विमुंचदि ज. वृ. ५. चेदयहि झायहि तं चेव । ज. वृ.

Loading...

Page Navigation
1 ... 76 77 78 79