Book Title: Samatva Yoga aur Anya Yoga
Author(s): Sagarmal Jain
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur

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Page 26
________________ के अनुसार ध्यान चार प्रकार के हो सकते हैं- 1. आर्त्तध्यान - सांसरिक इच्छाओं की पूर्ति के लिये मन की एकाग्रता 2. रौद्रध्यान - हिंसात्मक क्रियाओं के लिये मन की एकाग्रता 3. धर्मध्यान - उदार एवं उदात्त विचारों पर या स्वंय की ओर दूसरों की भलाई के विचार पर मन की एकाग्रता 4. शुक्लध्यान-मन शुक्लध्यान में अपनी एकाग्रता का क्षेत्र क्रमशः सीमित कर लेता है और अंततः विचार स्थिर तथा गतिरहित या निर्विकल्प हो जाते हैं । 8. समाधि पतंजलि के अनुसार मन, वाणी और काया की विकल्प एवं गति रहित स्थिति समाधि है । दूसरे शब्दों में यह मन की ऐसी निर्विकल्प अवस्था है, जिसमें स्वयं का बाह्य जगत् से संबन्ध टूट जाता है । पतंजलि योग के तीन आंतरिक अंग धारणा, ध्यान और समाधि जैन मान्यता के ध्यान से ही जुड़े हुए है । धारणा और ध्यान को धर्म ध्यान की विभिन्न स्थितियों में समाहित किया जा सकता है और समाधि को शुक्ल-ध्यान में । अन्य प्रकार से हम पतंजलि के धारणा और ध्यान को जैन मान्यता के ध्यान के अंतर्गत मान सकते है और समाधि को जैन मान्यता के "कायोत्सर्ग" के अंतर्गत । यहाँ यह जान लेना आवश्यक है कि पतंजलि योग - पद्धति में धारणा, ध् यान और समाधि - इन तीनों को योग-साधना के आंतरिक अंग माना जाता है और आंतरिक अंग होने से वे एक-दूसरे से स्वतंत्र नहीं है, लेकिन वे एक दूसरे से सम्बद्ध या अनुस्यूत है, क्योकि धारणा के बिना ध्यान संभव नहीं है और ध्यान के बिना समाधि संभव नहीं है। 9. त्रिविधयोग यद्यपि इस आगम युग में अष्टांग योग के ध्यान और अन्य अंग जैनियों में प्रचलित थे, किन्तु तत्कालीन जैन साधना मुक्ति के त्रिपक्षीय या चतुःपक्षीय मार्ग में केन्द्रित थी- उदारणार्थ सम्यक्-दर्शन या सम्यक् श्रद्धान (Right-Faith). सम्यक्–ज्ञान (Right- knowledge) सम्यक् - चरित्र (Right-conduct ) और सम्यक्-तप या आत्म संयम । इनमें से सम्यक् - चरित्र और सम्यक् - तप को एक ही मानकर उमास्वाति और अन्य जैन आचार्यो ने मुक्ति का त्रिपक्षीय मार्ग बताया है । मुक्ति का यह त्रिपक्षीय मार्ग सामान्यतः हिन्दुओं और बौद्धों में भी मान्य रहा है । हिन्दुओं में यह भक्तियोग, ज्ञानयोग और कर्मयोग के रूप में और बौद्धो में शील, समाधि और प्रज्ञा के रूप में स्वीकार्य है । सम्यक् - ज्ञान की तुलना गीता समत्वयोग और अन्य योग 25 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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