Book Title: Samatva Yoga aur Anya Yoga
Author(s): Sagarmal Jain
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur

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Page 36
________________ इस काल के एक अन्य जैन आध्यात्मिक विचारक हुए है, जैसे आनन्दघन । आनन्दघन ने 24 तीर्थकरों की प्रशंसा में लिखे हुए अपने पदों और गीतों के द्वारा जैन आध्यात्मिकता और योगसाधना का पुनरावर्तन किया। यशोविजयजी और आनन्दघनजी का साहित्य पूर्णतः हरिभद्र से प्रभावित है, फिर भी उन पर पतंजलि के राजयोग और हठयोग का प्रभाव देखा जा सकता हैं। जैसा कि पहले ही मै कह चुका हूँ, इस काल का प्रमुख लक्षण था, जैन-योग पर हिन्दू परम्परा के हठयोग की कुंडलिनी जागरण और षट्चक्र भेदन की अवधारणा का प्रभाव जैन-योग परम्परा में भी आया है। आधुनिक काल (20वी शताब्दी) आधुनिक काल में हम देखते है कि जैनयोग की साधना में बहुत अष्टि क परिवर्तन और विस्तार हुआ है। इसकाल में तनाव-मुक्ति (tension relexation) के एक साधन के रूप में योग और ध्यान के प्रति जन सामान्य का आकर्षण बहुत बढ़ गया है। आज मानवजाति अपने लोभ और आकांक्षाओं से उत्पन्न तनावों से पूरी तरह जकडी हुई है, बुरी तरह ग्रस्त हैं। यह एक संयोग ही था कि श्री एस,एन, गोयनका का वर्मा से भारत लोटे तो भारत में प्राचीन बौद्ध विपश्यना ध्यान की उपलब्धि हुई जो कि प्रारम्भिक जैन साधना में भी थी। तेरापंथी जैन संम्प्रदाय के आचार्य महाप्रज्ञ जी ने पहली बार इसे गोयनका जी से समझा और जैन धर्म के विधि-विधान संबन्धी स्वयं की जानकारी तथा पतंजलि योगसूत्र के आधार पर ध्यान की इस पद्धति को प्रेक्षा-ध्यान के नाम से व्यवस्थित रूप दिया। हमारे समय में प्रेक्षा-ध्यान जैनयोग की एक महत्वपूर्ण विध II हैं। यद्यपि कुछ अन्य जैन सम्प्रदायों के आचार्यों ने भी ध्यान और योग की उनकी अपनी पद्धतियाँ का विकास किया, किन्तु उनमें नया कुछ नही है, सिर्फ प्रेक्षा और विपश्यना की मिलावट है। यहाँ यह भी दृष्टव्य है कि हमारे समय का प्रेक्षा–ध्यान भी बौद्ध-जैन परम्परा के विपश्यना और पतंजलि के अष्टांगयोग तथा हठयोग के साथ कुछ आधुनिक मनोविज्ञानिक अवधारणाओं का सम्मिश्रण है। संक्षेपतः हम कह सकते है कि प्रारम्भिक काल में अर्थात् महावीर के पहले जैनयोग और ध्यान-पद्धतियाँ तो थी ही, किन्तु अपनी प्रक्रिया के सम्बन्ध 1 में अस्पष्ट थी। हम उनको प्रारम्भ की अन्य श्रामणिक परम्पराओं से पृथक नहीं कर सकते, क्योंकि उससे सम्बान्धित साहित्य तथा अन्य प्रमाणों का अभाव है। द्वितीय काले में अर्थात् आगम काल में प्राणायामके अतिरिक्त पतंजलि योग सूत्र समत्वयोग और अन्य योग : 35 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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