Book Title: Samatva Yoga aur Anya Yoga
Author(s): Sagarmal Jain
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur

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Page 24
________________ योगसूत्र में पाँच नियम इस प्रकार बताए गयो है- 1. शौच 2. संतोष 3. तप 4. स्वाध्याय और 5. ईश्वर प्रणिधान (1.Piousness, 2. Satisfaction, 3. Penance, 4. Study of scriptures and 5. Meditation of the true nature of God or self) __ जैन धर्मग्रंथो में ये पाँच नियम भी कुछ भिन्न नामों से स्वीकार किये गये है। भगवतीसूत्र में भगवान महावीर सोमिल को समझाते हुए कहते हैं कि मेरी साधना पद्धति छ: प्रकार की है- 1. तप, 2. नियम, 3. संयम, 4. स्वाध्याय, 5.ध्यान और 6. आवश्यक (आत्म सजगता के साथ अनिवार्य कर्तव्यों का पालन) जैन आगमों में इनमें से तप और स्वाध्याय का उल्लेख उन्हीं नामों से हुआ है, संतोष का संयम के नाम से और ईश्वर प्रणिघान का ध्यान साधना के नाम से उल्लेख हुआ है। ऋषिभाषित के प्रथम अध्याय में हमें शौच का भी उल्लेख मिल जाता है। यद्यपि जैन आगमों में शौच का उल्लेख मिलता हैं, तथापि जैनियों में शौच का अर्थ शारीरिक शुद्धि नहीं है, किन्तु वे उसे मानसिक शुद्धि, अर्थात हृदय की शुद्धता मानते है। जैन विचारधारा और पतंजलि योगसूत्र दोनो ही यह मानते हैं कि ये नियम यमों या महाव्रतों के लिये सहायक है। यहाँ हम यह भी कह सकतें है कि पाँच महाव्रतों की पच्चीस भावनाओं या बत्तीसयोग संग्रह को भी पतंजलि के नियमों की ही तरह माना जा सकता है। 3. आसन पतंजलि की योगसाधना का तृतीय अंग आसन (Bodily postures विशेष शारीरिक स्थिति) है। इनमें से अनेक आसन जैन परम्परा में कायाक्लेशतप के नाम से माने गये है, जो कि बाह्य तपो का छठवाँ प्रकार हैं। भगवती, औपापतिक और दशाश्रुतस्कंघ जैसे जैन आगम ग्रन्थो में भी हमें अनेक प्रकार से आसनों के नाम मिलते है जैन धर्म ग्रन्थों में ऐसा भी उल्लेख है कि भगवान महावीर ने केवलज्ञान को गोदुहासन में प्राप्त किया था। 4. प्राणायाम पतंजलि की योगपद्धति का चतुर्थ सोपान प्राणायाम है। जैन आगम साहित्य में इसके सम्बन्ध में हमें कोई स्पष्ट निर्देशन नहीं मिलता है, केवल आवश्यकसूत्र की चूर्णि भाग ...... पृ. ६५ (७वीं शती) में यह उल्लेख मिलता है कि वार्षिक प्रतिक्रमण (Yearly penitential retreat) के अवसर पर व्यक्ति को एक हजार श्वासोच्छवास का ध्यान (कायोत्सर्ग) करना चाहिये। इसी प्रकार चातुर्मासिक समत्वयोग और अन्य योग : 23 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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