Book Title: Samatva Yoga aur Anya Yoga
Author(s): Sagarmal Jain
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur

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Page 25
________________ प्रतिक्रमण के अवसर पर पाँच सौ श्वासोच्छवास का, पक्षिक प्रतिक्रमण के अवसर पर दो सौ पचास श्वासोच्छवास का, दैवसिक प्रतिक्रमण के अवसर पर एक सौ और रात्रिकालीन प्रतिक्रमण के समय पचास श्वासोच्छवास का ध्यान करना चाहिये। ज्ञातव्य है कि यहाँ एक श्वास को लेने और छोड़ने के काल को मिलाकर एक श्वासोच्छवास कहा गया है। मेरे विचार से यह ऐसा ही था जैसा कि आज भी बौद्ध संप्रदाय के विपश्यना ध्यान-साधना की आनापानसति और तेरापंथ जैन सम्प्रदाय के आचार्य महाप्रज्ञ के प्रेक्षाध्यान की श्वास-प्रेक्षा की पद्धति है। प्रांरभिक जैन धार्मिक ग्रन्थों में कुंभक, पूरक, रेचक, का कोई संदर्भ मुझे नहीं मिला, यद्यपि बाद में जैन आचार्य शुभचन्द्र और हेमचन्द्र ने अपने ग्रन्थ क्रमशः ज्ञानार्णव और योगशास्त्र में अनेक प्रकार के प्राणायामों का उल्लेख किया हैं। 5. प्रत्याहार पतंजलि योग सूत्र का पाँचवा सोपान प्रत्याहार है। प्रत्याहार का अर्थ है अपनी ज्ञानेन्द्रियों पर नियंत्रण रखना। जैनधर्म में इसका विस्तारपूर्वक विवेचन प्रतिसंलीनता नाम से छठवे बाह्यतप के रूप में किया गया है। अनेक जैन आगमों में इन्द्रिय-संयम नाम से भी योग के इस पाँचवे अंग का वर्णन हुआ हैं उत्तराध्ययनसूत्र के 32 वें अध्याय (21/86) मे इसका विशद विवेचन है। 6. धारणा पतंजलि की योगसाधना पद्धति के छटवें, सातवें और आठवें सोपान क्रमशः धारणा, ध्यान, समाधि है। यद्यपि जैन तर्कशास्त्र में मतिज्ञान का चौथा प्रकार धारणा के रूप में माना जाता है, किन्तु वहाँ धारणा का आशय जैन तर्कशास्त्र की अपेक्षा से है। पतंजलि की योगपद्धति से वह कुछ भिन्न भी है। पतंजलि की योग साधना-पद्धति में धारणा का अर्थ है मन की एकाग्रता, जब कि जैन साहित्य में धारणा का अर्थ है अनुभवों का धारणा करना (Retention of our experiences) पतंजलि की धारणा का आशय जैन संप्रदाय के ध्यान से बहुत कुछ मिलता जुलता है। 7. ध्यान जैन परम्परा में सामान्यतः ध्यान का अर्थ है- किसी वस्तु या मानसिक संकल्पना पर मन की एकाग्रता (concentration of mind on some object or a thought) उनके अनुसार हमारे विचार और उनका कर्ता मन चंचल या अस्थिर है। मन के नियमन के द्वारा मन की एकाग्रता को ध्यान कहा जाता है। अतः जैनों 24 : समत्वयोग और अन्य योग Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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