Book Title: Samacharishatakam
Author(s): Samaysundar, 
Publisher: Jindattsuri Gyanbhandar

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Page 13
________________ . *.SCXS सामाचारीशत- पर्व करेसि भंते!पश्चात् इरियावहियं अधिकार ॥४॥ एवमाइ उचरिऊण ततो इरियावहियाए पद्धिकमइ, पच्छा आलोएत्ता वंदित्ता आयरीयमादी जहारायणिए, पुणरवि गुरुं वंदित्ता पडिलेहित्ता भूमि निविट्ठो पुच्छति पढति वा, एवं चेइएसु वि, असइ साहुचेझ्याणं पोसहसालाए सगिहे वा सामाइयं आवस्सगं करेड, तत्थ नवरि गमणं नस्थि। एवं भणइ जाव नियम पजुधासामि त्ति, पच्छा सो इहिपत्तो सावगोसामाइयं करेइ, 'करेमि भंते ! सामाइयं सावजं जोग पञ्चक्खामि दुविहं तिविहेणं जाव नियमं पजुवासामि एवमाइ, एवं सामाइयं काऊण ईरियावहियं पडिकतो वंदित्ता पुच्छति पति वा ॥१॥ श्रीहेमाचार्यकृतयोगशास्त्रवृत्तौ ( पत्रं १७६); तथाहि-एवं कृतसामायिकेापथिकायाः प्रतिक्रामति, पश्चादागमनमालोच्य यथाज्येष्ठमाचार्यादीन् बन्दते ॥ १०॥ ननु श्रीआवश्यकबृहद्धत्ति-प्रमुखग्रन्थेषु विधिवादेन सामायिकदण्डकोच्चारादनु ईर्यापथिकीप्रतिक्रमणं दर्शितं, परं क्वाऽपि चरितानुवादे नाऽपि एवं सामायिकदण्डकोच्चारेापथिकीप्रतिक्रमणयोः पौर्वापर्यं लिखितमस्ति ? उच्यतेSM नवाशीवृत्तिकारक-श्रीअभयदेवसूरिपदानभृङ्गश्रीवर्धमानसूरिभिः सं० ११४१ मिते कृते कथाकोशग्रन्थे पञ्चमाणुव्रतद फलवर्णनाधिकारे एवमुक्तमस्ति-"जिणगुत्तो नवकारपुरस्सरं काऊण निसीहिलं पविट्ठोपासाए कयसामाईओ ईरियावहियं पडिक्कभिऊण जो कोइ इत्थ अच्छह देवो दाणवो वा भूओ वा सो मज्झ अणुजाणेउ भवणमिणति भणिऊण सज्झायं काउमाढत्तो इति” ॥११॥ आह शिष्यः-ननु-श्रीआवश्यकवृत्त्यादौ विधिवादेन सामायिकदण्डकोच्चारानन्तरं साक्षादेव ईर्यापथिकीप्रतिक्रमणं लिखितम् । श्रीआवश्यकचूादौतु ॥४॥ VITE:

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