Book Title: Sagarmal Jain Vyaktitva evam Krutitva
Author(s): Jain Samaj Shajapur MP
Publisher: Jain Samaj Shajapur MP

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Page 10
________________ परिचित थे, दूसरे प्रो. जी. आर. जैन से भी आपका पूर्व परिचय था और आप जैन सापेक्षतावाद और आधुनिक विज्ञान पर शोधकार्य करने की दृष्टि से उनसे अधिक गहराई से विचार-विमर्श करना चाहते थे। अतः 27 नवम्बर 1964 को मात्र 17 दिन के रीवाँ प्रवास के पश्चात् आप ग्वालियर के लिए रवाना हुए। ग्वालियर पहुँचने पर आप मान-मन्दिर होटल में रुके और प्रातः महाविद्यालय के प्राचार्य प्रो.एम.एम. कुरेशी और विभागाध्यक्ष डॉ. एस. एस. बनर्जी से मिले। दोपहर में आपने टी.सी. बाफना और प्रो. जी.आर. जैन से मिलने का कार्यक्रम बनाया। जब प्रो. जी.आर. जैन से मिले तो उनका पहला प्रश्न था कहाँ रुके हो? यह बताने पर उनका पहला वाक्य था -- तुम सामान लेकर आ जाओ और तत्काल ही एक हाल की साफ-सफाई कर आपके रहने की व्यवस्था अपने ही घर में कर दी। संध्या को महाविद्यालय के दर्शन-विभाग के व्याख्याता डॉ. अशोक लाड और वाणिज्य विभाग के श्री गोविन्द दास माहेश्वरी आप से मिलने आये। इनसे प्रथम परिचय ही ऐसा रहा कि आप तीनों गहरे मित्र बन गये। एक ही दिन में परिवेश ही बदल गया और शाजापुर वापस लौट जाने का विकल्प समाप्त हो गया। दिसम्बर में शीतकालीन अवकाश के पश्चात जनवरी 1965 में आप छोटे पुत्र, पत्री और पत्नी को लेकर ग्वालियर आ गये। यद्यपि आप के लिए अध्यापन का कार्य बिल्कुल नया था, किन्तु पर्याप्त परिश्रम और विषय की पकड़ होने से आप शीघ्र ही छात्रों के प्रिय बन गये। संयोग से महाविद्यालय में उसी वर्ष दर्शनशास्त्र की स्नातकोत्तर कक्षायें प्रारम्भ हुई थीं। अतः आपने कठिन परिश्रम करके छात्रों को न केवल महाविद्यालय में पढ़ाया, बल्कि घर पर बुलाकर भी उनकी तैयारी कराते रहे। सभी का परीक्षाफल भी अच्छा रहा। अतः शीघ्र ही एक सुयोग्य अध्यापक के रूप में आपकी ख्याति हो गयी। ग्वालियर में जब मनोविज्ञान का स्वतन्त्र विषय प्रारम्भ हुआ तो आपने प्रारम्भ में उसके अध्यापन का दायित्व भी दर्शनशास्त्र के अध्यापन के साथ-साथ सम्भाला। आपने 'जैन, बौद्ध और गीता के आचार-दर्शनों का तुलनात्मक अध्ययन' जैसा व्यापक विषय लेकर पी-एच.डी. की उपाधि हेतु अपना पंजीयन करवाया और शोध प्रबन्ध लिखने की तैयारी में जुट गये। इसी सन्दर्भ में जैन और बौद्ध परम्परा के मूल ग्रन्थों विशेष रूप से जैन आगमों और बौद्ध त्रिपिटक साहित्य का अध्ययन प्रारम्भ किया। अध्यापक के रूप में पुनः मालव भूमि में Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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