Book Title: Sagarmal Jain Vyaktitva evam Krutitva
Author(s): Jain Samaj Shajapur MP
Publisher: Jain Samaj Shajapur MP

View full book text
Previous | Next

Page 15
________________ 14 दायित्व भी ग्रहण करना पड़ा था, जिसका निर्वाह वाराणसी आने के पश्चात् भी सन् 1986 तक करते रहे। सम्प्रति भी आप अ.भा. दर्शन परिषद के वरिष्ठ उपाध्यक्ष हैं। हमीदिया महाविद्यालय के दर्शन विभागाध्यक्ष एवं पार्श्वनाथ विद्याश्रम के निदेशक के रूप में कार्य करते हुए आपकी प्रतिभा को सम्मान के अनेक अवसर उपलब्ध हुए। न केवल आपके अनेक आलेख पुरस्कृत हुए, अपितु आपके शोध-ग्रन्थ जैन, बौद्ध और गीता के आचारों का तुलनात्मक अध्ययन, भाग-1 एवं भाग-2 को प्रदीपकुमार रामपुरिया पुरस्कार से तथा जैन भाषादर्शन को स्वामी प्रणवानन्द दर्शन पुरस्कार से सम्मानित किया गया। डॉ. सागरमल जैन, पार्श्वनाथ शोधपीठ, वाराणसी के निदेशक तो है ही, उसके साथ-साथ वे जैन विद्या की अनेक संस्थाओं से भी जुड़े हुए हैं। वे आगम अहिंसा समता और प्राकृत संस्थान, उदयपुर के भी मानद निदेशक हैं। जहाँ आपके मार्ग दर्शन में प्रकीर्णक साहित्य के अनुवाद का कार्य चल रहा है। अब तक पाँच प्रकीर्णक प्रकाशित हो चुके हैं। अ.भा. जैन विद्वत परिषद के तो आप संस्थापक रहे हैं, वर्षों तक आप इसके उपाध्यक्ष भी रहे हैं। राष्ट्रीय मानव संस्कृति शोध संस्थान, वाराणसी के आप उपाध्यक्ष हैं। जैन विद्या के क्षेत्र में जब और जहाँ कहीं भी कोई योजना बनती है, मार्ग निर्देशन हेतु आपका स्मरण अवश्य किया जाता है। वस्तुतः आप विद्वान् तो हैं ही, किन्तु एक सामाजिक कार्यकर्ता भी हैं। आपके द्वारा राष्ट्रीय स्तर की अनेक कान्फ्रेंसो और संगोष्ठियों का सफलतापूर्वक आयोजन हुआ है। देश-विदेश की यात्रा _देश के विभिन्न विश्वविद्यालयों और जैन संस्थाओं ने आपके व्याख्यानों का आयोजन किया। बम्बई, कलकत्ता, मद्रास, अहमदाबाद, पाटण, उदयपुर, जोधपुर, दिल्ली, उज्जैन, इन्दौर आदि अनेक नगरों में आपके व्याख्यान आयोजित किये जाते रहे हैं। साथ ही आप विभिन्न विश्वविद्यालयों में विषय-विशेषज्ञ के रूप में भी आमन्त्रित किये जाते हैं। यही नहीं आपको एसोशियेशन आफ वर्ल्ड रिलीजन्स 1985 में तथा पार्लियामेन्ट आफ वर्ल्ड रिलीजन्स 1993 में जैनधर्म के प्रतिनिधि वक्ता के रूप में अमेरिका में आमन्त्रित किया गया। पार्लियामेन्ट आफ वर्ल्ड रिलीजन्स के अवसर पर न केवल आपने वहाँ अपना निबन्ध प्रस्तुत किया अपितु अमेरिका के विभिन्न नगरों -- Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34