Book Title: Sagar Nauka aur Navik Author(s): Amarmuni Publisher: Veerayatan View full book textPage 2
________________ बिम्ब तीर्थंकर महावीर एक व्यक्ति नहीं, विश्वात्मा है, विश्वपूरुष है। देश, जाति और मत-पंथ आदि की सीमाओं से परे है, अनन्त है। उस ज्योतिपुरुष का प्रकाश शाश्वत है। वह काल की सीमाओं को धकेलता हआ अनन्त की ओर सतत गतिशील रहेगा। भगवान महावीर का प्रबोध उभयमुखी है। वह जहाँ अन्तर्मन में सुप्त चेतना को जगाता है, वहाँ दूसरी ओर समाज की मोह-निद्रा को भी भंग करता है। महावीर का ही मक्त उदघोष है: • हर आत्मा मूलतः परमात्मा है। क्षद्र-से-क्षद्र प्राणी में भी अनन्त चैतन्य ज्योति विद्यमान है। सम्पूर्ण मनुष्य जाति एक है। उसमें जाति, वर्ग, वर्ण, पंथ आदि के भेद कैसे? सबको अपना जीवन प्रिय है। सब सुख चाहते हैं, कोई भी दुःख नहीं चाहता। अतः सुख बांटो, सुख चाहते हो तो। जो आगे बढ़कर दुखियों को उठाता है, अपना सुख उनके सुख के लिए समर्पित करता है, वह धन्य है। सत्य के प्रति गहरी आस्था ही, धर्म का प्रथम सोपान है। स्वतंत्रता-विरोधी तत्त्व उद्दण्डता और उच्छंखलता को जन्म देते हैं। भगवत्ता भिक्षा में प्राप्त नहीं होती है। परम्पराएँ बदलती हैं, सत्य अपरिवर्तित होता है। • किसी के अधिकार का अपहरण हिंसा है। • निरीह मूक पशुओं की बलि यज्ञ नहीं है। यज्ञ है, अपने अन्दर के पशुत्व की ज्ञानाग्नि में आहुति । • अपराजित जीवन का मार्ग संयम है। Jain Elucation International For Private & Personal use onlyPage Navigation
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