Book Title: Sagar Dharmamrutam
Author(s): Ashadhar, Manoharlal Shastri
Publisher: Manikchand Digambar Jain Granthamala Samiti

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Page 9
________________ धर्मात्मा भाइयोंको चाहिए कि एक तो ग्रन्थमालाके फण्डको बढ़ानेका प्रयत्न करें और दूसरे इसके द्वारा प्रकाशित हुए ग्रन्थोंकी सौ सौ पचास पचास, या कमसे कम दश दश पाँच पाँच प्रतियाँ खरीदकर जैनसंस्था ओंको, विद्यार्थियोंको, निर्धनोंको और अन्यधर्मी विद्वानोंको दान कर दिया करें। यदि जैनसमाजके धर्मात्माओंने इस ओर ध्यान दिया, तो हम विश्वास दिलाते हैं कि इस संस्थाके द्वारा सैकड़ों लुप्तप्राय और दुर्लभ जैनग्रन्थोंका उद्धार हो जायगा और विश्वसाहित्यमें जैनसाहित्य भी एक गणनीय साहित्य समझा जाने लगेगा। हीराबाग, बम्बई।। कार्तिक वदी २ सं० १९७२ विनीत-~नाथूरामप्रेमी। (अवैतनिक मंत्री) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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