Book Title: Sachoornik Aagam Suttaani 07 Uttaradhyayan Niryukti Evam Churni Aagam 43
Author(s): Anandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Param Anand Shwe Mu Pu Jain Sangh Paldi Ahmedabad

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Page 15
________________ आगम (४३) भाग-7 "उत्तराध्ययन”- मूलसूत्र-४ (नियुक्ति: + चूर्णि:) अध्ययनं H, मूलं [-]/ गाथा ||-|| नियुक्ति: । पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र-[४३] मूलसूत्र-[०३] उत्तराध्ययन-नियुक्ति: एवं जिनदासगणिरचिता चूर्णि: फलयांगों श्रीउत्तरा १ विनयाध्ययने चूणौँ । सूत्रांक H २ ARCREArc यानुयोगं, गृणंति शास्त्रार्थमिति गुरवः ब्रुवन्तीत्यर्थः, ते पुनराचार्या अहंदादयो वा तदुपदेशः-तदाज्ञा, गुरूपदेशानुवृत्तिरित्यर्थः तया गुरूपदेशानुवृत्या, गुरूपदेशानुसारेणंति ॥ तम्स फलजोगमंगलसमुदायत्था तहेव दाराई । तब्भेदनिरुक्तिकम, पओयणाई च वच्चाई ॥२॥ 'तस्ये 'ति तस्योत्तराध्ययनानुयोगस्य फलं-प्रयोजनं योगः-सम्बन्धो मङ्गलं-उपचारः समुदायार्थः-पिण्डार्थः द्वाराणि-उपक्रमादीनि, 'तदि' त्यनेन द्वाराण्येव संवन्ध्यन्ते इति, तद्भेदाः-तत्प्रकाराः, निरुक्तिः-निर्वचनं क्रमो-व्यवस्था प्रयोजन-1 शास्रोपकार, एते अधिकारा पाच्या आह-किमुत्तराध्ययनानुयोगे फलम् उच्यते, इह जीवस्स अट्टविहकम्मबंधणबद्धस्स सम्मईसणनाणचरित्तेहिं मोक्खो भवति, सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्रात्मकानि चोत्तराध्ययनानि अतः तयाख्यानारम्भः, पायेण चन धर्मकथामन्तरेण दर्शनादिप्राप्तिरस्ति, अतस्तद्विकलस्याकारणता, कारणतच कार्यसिद्विरस्तीत्यत उत्तराध्ययनानुयोगादर्शनादिप्राप्तिः ततो मोक्ष इति फलवानुत्तराध्ययनानुयोगारम्भ इति । कः पुनरुत्तराध्ययनानुयोगस्याभिसंबन्ध इति, उच्यते। उत्तरायणा पुच्च आयारस्सुवरि आसि, तस्थेव तेसिं उपोद्घातसंबंधाभिवत्थाणं, ताणि पुण जप्पमिई अज्जसेज्जंभवेण मणगापतुणा मणगहियत्याए णिज्झहियाणि दस अज्झयणाणि दसवियालियंमित्ति, तम्मि चरणकरणाणुयोगो वणिज्जति,तप्पभिई च तस्सु| परि ठविताणि, एतेणाभिसंबंधेणुत्तरज्झयणाणि आगताणि, अहया साधुगुणसंजुचं कोई धम्म पुच्छेज्जा, पच्छा सो तेसि विण ॥ दीप अनुक्रम 4 + [15]

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