Book Title: Sachitra Shraman Bhagwan Mahavir
Author(s): M Subba Rao
Publisher: Sanmati Haidarabad

Previous | Next

Page 8
________________ प्रस्तावना जैन धर्म की मान्यता बहुत ही प्राचीन है। “जिन' या "अर्हत'' की पूजा बहुत अनादिकाल से होती रही है और यह ऋगवेद के निम्न क्ष्लोक से (सिद्ध) होता हैं । ऋषभं मासमाननां सपत्नानां विसासहीम्। हंतारं शत्रुणां कृधि विरजं गोपितांगवाम् ।। (ऋग्वेद x 12.166) तिर्थंकर ऋष्मनाथ और उनके पश्चात के तेइस तिर्थंकरों ने जीवन (उत्थान) एवम मुक्ति के लिए आध्यात्मिक मार्ग सर्व जीवों को दिखाया था । सभी तिर्थंकरों की जीवनी इतिहास की बहुत बड़ी निधी है और उनके अध्ययन से सर्व मानव जाति को, चाहे जैन धर्म अनुयायी हो या न हो, उत्तम जीवन जीने की प्रेरणा मिलती है और यह पुस्तक इस बात का ज्वलन्त उदाहरण है। श्री सुब्बारावजी, जो आन्ध्र प्रदेश के लेखापरीक्षक कार्यालय में कार्यरत है, मेरे पास आए और अपना परिचय देने के उपरान्त बताया कि वें जैन धर्म के विषय में पुस्तक लिखने का विचार रखते हैं। और जैन धर्म के मूल भूत तत्वों के विषय में जानकारी चाही। वार्तालाप और परस्पर विचारों के आदान प्रदान के पश्चात मैने उन्हें निम्न लिखित दो पूस्तके दी। 1. lumination of Jaina Tenets (जैन सिद्धान्त दीपिका) (आचार्य श्री तुलसी द्वारा लिखित) 2. श्रमण महावीर मुनि श्री नथमल जी द्वारा लिखित (वर्तमान में आचार्य महाप्रज्ञजी) लेखक ने अपनी पुस्तक को मर्तरूप देने में अन्य जैन साहित्य कृतियों, जैन धर्म सम्बन्धित पुस्तकों और ग्रन्थों तथा उपरोक्त लिखित पुस्तक का अध्ययन किया होगा। मेरे विचार में लेखक का इस पुस्तक का लिखने का उद्देश्य उन लोगों में जैन धर्म और जैन सिद्धान्तों के ज्ञान के प्रति रुचि उत्पन्न करना है जौ जैनधर्म के अनुयायी नहीं हैं एवम उन्हे धर्म के प्रति प्रेरणा प्रदान करना हैं। जब हम पुस्तक के १०० से अधिक चित्रों और उनमें सम्बन्धित लेखों का अवलोकन करते है जो पुस्तक का मूल भाव दर्शाते हैं, मेरे विचार में लेखक ने अपने मुख्य उद्देश्य को साध्य करने में और मुख्यतया उन बालक बालिकाओं में, जो जैन धर्म के अनुयायी है सफलता प्राप्त की है। मेरे विचार में सभी वर्गों के जैनियों को लेखक के कार्य की सराहना करनी चाहिए और लेखक का उत्साह बढाना चाहिये। मेरी कामना है कि भविष्य में भी लेखक इस प्रकार की उपयोगी कृतियों का लेखन कार्य करने में यशस्वी बने । लेखक ने यह कृति आचार्य श्री तुलसी को समर्पित कर, उनके प्रति अपनी श्रद्धा का आनंद अनुभव किया है एवम् यह बात लेखक को गौरन्वित करेगी ऐसा मुझे पूर्ण विश्वास है | संचेती बालचंद एडवोकेट रामकोट, हैदराबाद Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 ... 222