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( १६६) (३६) युगलिया सुख वर्णन हिव युगलिया नां सुख साभलउ अति रुडी नित्योयोति रत्नमय भूमि, तिहा दश विध कल्पट्टम मनोवांछित पूरइं, एकि कल्पद्रुम अष्ट भूमिका रत्न निर्मित श्रावास तणऊ आकार धरई, तेहि माहि नित्योद्योत पल्यंक रत्नमय सिंहासन सहित एकि चंद्र सूर्व नी प्रभा श्रापणी काति करी पराभवई। एकि श्री पुरुष योग्य दिव्योपभोग्य आमरण विस्तारई, एक चकवत्तीनी रसोइ पाहिइ अनत गुण सुस्वाद । अटोतर सउ खाद्य, चोसठि व्यजन रूप श्राहार श्रापई। एकि स्थाल विशाल वाटुला वाटुली सीप कच्चोल शृंगारादिक, भाजन सवे समोपई। एकि क्षोभ, पट्टकुल, चीनाशुक, क्षीरोदक, प्रमुख पच वर्ण विचित्र भाँति स्वच्छ' निर्मल वस्त्र पूरई। एकि वल बुद्धि आयु, वृद्धिकारक शीतल सरस श्राप्यायक पाणी आपता तृषा चूरइ। एकि वीणा, वेणु मृदग, यमल, शख, पटह कंसाल' प्रमुख अगुण पचास वादित्र स्वर साभलावई मधुर । एकि तिलकु, वकुल, अशोक, चम्पक, कुद, मचकुदाटि, पुण्य प्रकर संपाडइ प्रचुर । एकि १ दीवानी परि उद्योत करइ, रात्रि ना अधकार निराकरइ । तेह युगलीया ना च्यारि मेद छप्पन अतर दीवा,
१ हेमवत, ऐरण्यवतः २ हरिवास रम्यक तणां ३ देवकुरु उत्तर कुरु ४ एकेकि पाहिइ अनुकमिह, अनंत गुण बल, रूव, सुख ते आठ सय धनुष १ एक गाऊ १ वि गाऊ ३ तिन्नि गाऊ ४ ऊँचा । एक १ एक रबि ३ त्रिन्नि ४ दिन अंतरि भोजन इगुणासी इगुणासी चउसटि ३ अगुण पंचास ४ दिन अत्य कालि अपत्य लालना। चउसहि १ चउसहि २ अटावीसं सउ बि सय छप्पन ४ पृष्ठ करंडा । त्रीजा १ वीना २ बोजा ३ पहिला ४ श्रारानी सुखिया । पल्योपम शाठमउ भाग १ एक पल्य २ वि पल्य ३ त्रिन्नि पल्य ४ श्रायः ।।
ते मवे जुगलीया दिव्य रूप, चउसष्टि लक्षण लक्षित देह स्वरूप, सम , बश्य । २. कंसाला पाठा-३ तण प्रनादि