Book Title: Rushabhayan me Bimb Yojna
Author(s): Sunilanand Nahar
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 9
________________ जागरूक होना आवश्यक है। इस ऋषभायण में बदलते हुए वक्त परिवेश में होने वाला रूपांतरण का बड़ा ही रोमांचकारी निदर्शन है। युगलिक युग में मनुष्य समाज के निर्माण की ओर बढ़ा। सुविधा के अभाव में व्यवस्थाओं का जन्म हुआ। राजा ऋषभ ने अभाव व अव्यवस्था में सबको व्यवस्थित होने, जो कर्मभूमि के सिंहद्वार में प्रवेश करने का संदेश दिया, वही अनेकानेक सिद्धान्त व अनुरणीय तथ्य इसी 'ऋषभायण महाकाव्य' में समादृत है। साम्राज्य विषयक परिकल्पना, साम्राज्य के अधि कारी, शासन और न्याय-व्यवस्था, राजस्व व्यवस्था, दंड व्यवस्था, सैन्य संगठन, यौद्धा और युद्ध का सांगोपांग चित्रण है । महाकाव्य में इतना ही नहीं सद्गुरू गौरव अंतर्निगूढ़ता (आत्मा व सिद्धावस्था), जगत् - निरूपण, माया - महिमा, मोक्ष-मीमांसा का सांगोपांग चित्रण है । दार्शनिक लक्ष्य में आतंरिक शुचिता और व्यापक जीवन-दृष्टि पर चिंतन है । व्यंजित सामाजिक संस्कार और सामाजिक रीतियाँ में सामाजिक विश्वास और प्रचलित परंपराएँ, नारी विषयक चिंतन, मानवीय एकता के विधायक तत्वों पर गूढ़ प्रकाश प्रतिपाद्य है, जिसकी आज के वक्त को सख्त जरूरत है । शोध-प्रविधि (Research Methodology) प्रस्तुत शोधकार्य में विवेचनात्मक, समीक्षात्मक पद्धति का समाश्रयण किया गया है । सिद्धान्त एवं प्रयोगगत तथ्यों का विवेचन-विश्लेषण के सम्बन्ध में विवेचनात्मक तथा समीक्षा के काल में समीक्षात्मक पद्धति का आश्रयण किया गया है । सिद्धान्तोपस्थान उदाहरण - प्रस्तावन, ऋषभायणगत - उदाहरण का विवेचन - विश्लेषण और समीक्षण की पद्धति के अनुसार प्रस्तावित शोधकार्य की पूर्णता की सिद्धि की गई है। कृत्कार्यो की समीक्षा अभी तक ऋषभायण पर बिम्ब विषयक कार्य नहीं हुआ है । शोध सीमा निर्धारण बिम्बों की सिद्धान्तगत प्रस्तुति के उपरान्त ऋषभायण के मूल उदाहरणों को उद्धत कर उनकी समीक्षा तक शोध की सीमा निर्धारित है ।

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