Book Title: Ritthnemichariyam Part 3 2
Author(s): Swayambhudev, Ramnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad

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Page 11
________________ ८ रिट्ठणे मिचरिउ अवरई सत्त सयाइं गइंदहं अग्गिम-खंधे थियाइं णरिंदहं जे चिरु वस विहेय रवि-जायहो जे वढुति भिच्च जुयरायहो आजाणेय-विलास धणुद्धर मक्खि-अग्गि-गोजाणि-भयंकर आयस-कंस-कवय-धूमप्पह दंतुर-पट्टिस-उग्ग-कुविग्गह वूह-वारि सण्णहेवि परिट्ठिय मई समाणु जुज्झणहं समुट्ठिय धत्ता भंजेवा दोण-कलिंग-किव हउं एक्कल्लउ एक्क-रहु । रक्खेवउ तुहुँ सव्वायरेण जाणेवि मई पट्ठवहि पहु॥ [३] दोणे पीडिउ हउं-वि रणे जइ अलियउ तो तुहुँ जे भणे। तो-वि णाह वुत्तउं करमि पहु-मित्तत्थेण सिरु धरमि ॥ पभणइ पहु परिवड्डिय-णेहउ तुहुं अम्हहं महुसूयणु जेहउ एक्कसि करहि महारउं वुत्तउं णरेण मरतें मरमि णिरुत्तउं सो एक्कल्लउ कुरुहुँ विरुज्झइ पासत्थु-वि गोविंदु ण जुज्झइ अणलिउ पाण विसज्जिय पत्थे चलणेहिं लग्गु जाहि परमत्थें सच्चइ चवइ जाव तव-णंदण वट्टइ कवण तुज्झु आकंदण धीरउ होहि काई किर चिंतए ण मरइ णरु णारायणे संतए दोमइ-लंभे सयंवर-मंडवे सुरहं भंडु जुज्झंतए खंडवे तालुय-वम्म-वहणे वंदि-गहे जइयहुं जुज्झिउ उत्तर-गोग्गहे तइयहुं किण्ण होंतु एक्कल्लउ एवहिं वट्टइ काइं नवल्लउं घत्ता मई पट्ठवंतु कुढे अज्जुणहो अप्पर महु उवलक्खवहि। एत्तियह मज्झे पई समर-मुहे जो रक्खइ सो दक्खवहि॥ [४] सामिय-विहुर धुरंधरउ समर-भरोड्डिय-खंधरउ। जाउहाण-जम-गोयरउ झत्ति पलित्तु विओयरउ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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