Book Title: Ritthnemichariyam Part 3 2
Author(s): Swayambhudev, Ramnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad

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Page 13
________________ रिठ्ठणे मिचरिउ सच्चइ चोइय-रहवरउ धणु-परिवेस-भयंकरउ। सरवर-किरण-करालियउ वइरिहिं रवि-व णिहालियउ।। ताम सत्त सुझुण्णय-माणा वाहिय-रहेहिं अखंचिय-वग्गेहिं सुर-वेयंड-सुंड-भुय-दंडेहिं विसहर-देह-दीह-णाराएहिं तो सिणिणंदणेण अविओलें छाइय सत्त-वि सरवर-जालें स-धय स-सारहि चूरिय रहवर णिहय तुरंगम छिण्णइं छत्तइं गय-साहणेण पधाइय राणा गंधवहुभुय-धवल-धयग्गेहिं इंदाउह-पयंड-कोयंडेहिं मेह-मइंद-समुद्द-णिणाएहिं जयसिरि-रामालिंगण-लोलें णं विंझइरि महाधण-जालें णं वासवेण णिसूडिय महिहर खुडियइं सिरइं णाई सयवत्तई घत्ता सिणि-तणएं सत्त-वि पवर भड णिविसें वइवस-णयरु णिय। णं कालें कवलु करतएण पढमु जे आपोसाणु किय॥ १ तहिं अवसरे मच्छर-भरिउ अंतरे थिउ दोणायरिउ। वाणासण-अक्खय-णिहिय-करु णाई स-सुर-धणु अंवुहरु॥ ओसरु ताय ताय णिय-थामहो रहु पइसरइ मज्झे संगामहो कण्हाऊरिय-संख-णिणाएं हउं पट्ठविउ जुहिट्ठिल-राएं रण-मुहे वत्त-गवेसउ पत्थहो करि पसाउ गुरु ओसरु पंथहो अज्जुणु तुम्ह पुत्तु हउं पोत्तउ भद्दिय-भायरु णिम्मल-गोत्तर भणइ दोणु वोल्लिउं चंगारउं पेक्खहु धणु-विण्णाणु तुहारउं दिट्ठि-मुट्ठि-संधाणु सरुग्गमु सिक्खिउ कवणु एत्थु पइं आगमु सच्चइ चवइ पवेस-णिवारा दरिसावमि लइ पहरु भडारा जइ पइं मई समाणु खणु जुज्झिउ तो विण्णाणु असेसु-वि वुज्झिउ ८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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