Book Title: Ritthnemichariyam Part 3 2
Author(s): Swayambhudev, Ramnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad
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रिठ्ठणे मिचरिउ कलस-महद्धउ पंचहिं वाणेहिं पुणु वीसद्ध-सरेहिं उरे ताडिउ एक्के रहवर सारहि एक्के
विज्झइ दुजण-वयण-समाणेहिं एक्के फरहरंतु धउ पाडिउ मोडिउ आयवत्तु अवरेक्के
घत्ता
चउ-सरेहिं चयारि तुरंग हय कह-कह-वि ण दोणायरिउ । णिल्लक्खणु णिद्धणु रामु जिह रणे एक्कलउ उव्वरिउ ।।
अण्णहिं रहवरे ठंताहो दोणहो पडिपहरंताहो। धणु पडिवारउ ताडियउ सुरगिरि-सिंगु व पाडियउ॥
वीयउं सुर-धणु-अणुहरमाणउं तइयउं वंक-मयंक-समाणउं छिण्णु चउत्थउं जम-भू-भंगुरु पंचमु वइवस-महिस-सिंगु व गुरु छठ्ठउं खगवइ-पेहुण-सच्छहु सत्तमु सुरकरि-दंत-सम-प्पहु अट्ठमु दोण-महादुम-सूलु व णवमउं णारसीह-लंगूलु व दसमउं रिउ-णयरु व विद्धंसिउ एयारहमउं जिह कुल-णासिउ जं जं दोणहो धणु करे पावइ तं तं हरइ मंडु विहि णावइ जं जं लेइ तं जि ण वलग्गइ णिगुणे कहि-मि धम्मु कहिं लग्गइ ८ किउ णिरत्थु दरिसाविय-भंगउ वंक-संगु किं कासु-वि चंगउ
घत्ता णिच्चे? परव्वसु पत्थ-गुरु ढुक्क पमाणु भग्ग-सिहउ। णिद्धणउ जुण्णउ जज्जरउ णं थिर-दोणु जे सच्च-मउ॥
[११] तहिं अवसरे तोसिय-मणेहिं सइं हरि-हर-कमलासणेहिं । लेवि लेवि सुर-पायवहो कुसुमइं घित्त सिरि जायवहो॥
विंधइ दूरु दोणु एत्तिय-गुणु तिण्णि-वि गुण सच्चइहे रणंगणे
कण्णु दिढ-प्पहारि वलि अज्जुणु एम देव बोल्लंति णहंगणे
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