Book Title: Ritthnemichariyam Part 3 2
Author(s): Swayambhudev, Ramnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad

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Page 10
________________ चउसट्ठिमो संधि कइचिंधु ण दीसइ सद्द-सर सुव्वइ महुमह-जलयरहो। सच्चइ पट्टविउ जुहिट्ठिलेण वत्त-गवेसउ भायरहो। णरवइ दुम्मण-दुम्मणउ वाह-जलोल्लिय-लोयणउ। वंधव-सोय-समाउलउ पभणइ चित्तुत्तावलउ । सच्चइ समर-सएहिं समत्थहो एक्क-वि वत्त ण णावइ पत्थहो पई मुएवि कहो पेसणु सीसइ वड्ड-वार कइ-चिंधु ण दीसइ वड्ड-वार हरि जलयरु पूरइ वड्ड-वार महु हियउ विसूरइ कउरव-कंस-वंस-विणिवायण जाहि गवसहि णर-णारायण तुहुं सुहि सूरु सुरिंद-परकम्म चित्त-जोहि लहु-करु लहु-विकम्मु तो विहसेप्पिणु पभणइ जायउ। णिय-तणु-तेय-तविय-तवणायउ भुय-परिहविय-पुरंदर-करि-करु वयण-पहोहामिय-छण-ससहरु जामि सुट्ठ पर आएं थक्कमि पई एक्कल्लउ मुएवि ण सक्कमि ८ घत्ता अच्छइ फुरंतु दोणायरिउ णवर करेवए चप्पणउं । हउं जामि जुहिट्ठिल-पट्ठविउ छुडु जसु रक्खहि अप्पणउं ।। [२] णर-णारायणेहिं चविउ पइ-मि णराहिव पट्टविउ। अग्गए दोणु परिट्ठियउ जइ ण जामि तो संकियउ॥ जइयहुं इंदपत्थे णिवसंतउ तइयहुं जे जियंत मुहु जोएवि थिय सण्णहेवि मेच्छ वहु-वारण णरवइ-अद्ध-रज्जु भुंजंतउ एवहिं आइय ते अरि होएवि रुप्प-महारह-गय-धणु-पहरण ४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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