Book Title: Rayansehari Kaha evam Jayasi ka Padmavata Author(s): Sudha Khavya Publisher: Z_Kesarimalji_Surana_Abhinandan_Granth_012044.pdf View full book textPage 2
________________ सेहरीकहा एवं जायसी का पद्मावत (१) सौन्दर्य - श्रवण - रत्नशेखर नायिका के सौन्दर्य का वर्णन किन्नर युगल से सुनकर उस पर मुग्ध होता है ।" पद्मावत का नायक रत्नसेन भी तोते के मुख से नायिका पद्मावती के सौन्दर्य का वर्णन प्रेम-विल होता है । सुनकर (२) सिंहलद्वीप की नायिका - रत्नशेखर की नायिका रत्नवती सिंहलद्वीप के जयपुर नगर के राजा जयसिंह की पुत्री है। पद्मावत की नायिका पद्मावती भी सिंहलद्वीप के ही सलग के राजा गन्धर्वसेन की पुत्री है।* (३) नायक सिंहलद्वीप से अनभिन्न दोनों काव्यों के नायकों को सिंहलद्वीप अज्ञात है। रत्नशेखर और मन्त्री रत्नदेव यक्ष की सहायता से रत्नवती का पता प्राप्त कर यक्ष को ही सहायता से वहाँ पहुँचते हैं तथा कामदेव के मन्दिर में ठहरते हैं रत्नसेन तोते के मार्गदर्शन में नाव से समुद्र पार कर सिंहलद्वीप पहुँचता है तथा शिव मंडप में रुकता है । (४) नायिका प्राप्ति के लिए योगी बेशरत्नशेखर का मन्त्री नायिका की खोज पूर्वभव की पुत्री लक्ष्मी से विवाह कर यक्ष की सहायता प्राप्त करता है तथा सिंहलद्वीप से योगिनी का रूप धारण कर नायिका का पता लगाता है। तोते के मार्गदर्शन से रत्नसेन स्वयं योगी का वेष धारण कर नाविका की प्राप्ति के लिए निकलता है।" ६३३ (५) सखियों द्वारा नायक का सौन्दर्य वर्णन - रत्नवती की सखी नायक का सौन्दर्य देखकर नायिका से आकर कहती है कि मन्दिर में प्रत्यक्ष कामदेव के समान कोई राजा बैठा है। यह सुनकर नायक को देखने को लालायित नायिका वहाँ जाती है । " पद्मावती की सखियाँ भी स्वामिनी को मन्दिर के पूर्व द्वार पर योगियों के ठहरने एवं उनके गुरु को योगी वेश धारी बत्तीस लक्षण सम्पन्न राजकुमार होने की सूचना देती है। यह सुनकर माविका वहाँ जाती है।" (६) मिलन स्थल - रत्नवती एवं रत्नशेखर का मिलन कामदेव के मन्दिर में होता है ।" रत्नसेन एवं पद्मावती शिव मण्डप में मिलते हैं । (७) वियोग में अग्निप्रवेश - रत्नशेखर मन्त्री द्वारा दी गई सात माह की अवधि समाप्त होने पर नायिका के वियोग में अग्नि प्रवेश करना चाहता है । 3 रत्नसेन भी होश में आने पर नायिका को न देख उसके वियोग में अग्नि में प्रविष्ट होना चाहता है। १. रायावि... २. सुनतहि राजा गा मरुछाई । जानहुं लहरि सुरुज के आई । पेम घाव दुख जान न कोई । जेहि लागे जाने पै सोई ॥ ११६ ॥ १-२ ...जोइसरव्व तग्गयचित्तो झायन्तो न जम्पइ न हसइ न ससइ । — पृ० २ करने जाता है और यक्ष की पहुँचकर रूप-परिवर्तनी विद्या Jain Education International ३. रयणसेहरीकहा- जिनहर्षगणि, सं० मुनि चतुरविजय, आत्मानन्द सभा, भावनगर, वि० सं० १६७४, पृ० ६ ४. पद्मावत जायसी, टीका० डा० वासुदेवशरण अग्रवाल, साहित्य सवन, चिरगांव वि० सं० २०१२ २४५२, — , ६. पद्मावत, १६०१४, १६२८-६ ५. रमणसेहरीकहा, पृ० १६ ७. रयणसेहरीकहा, पृ० १० ८. पद्मावत, १२६।१-६ १०. पद्मावत, १६३३१-६ १२. पद्मावत, १६४/६, १६५।१ ६. रयणसेहरीकहा, पृ० १६ ११. रयणसेहरीकहा, पृ० १७ १३. ............रायाणं च हुअवहस्स परिक्खणं दिन्तं पासई । पृ० १५ जैसे सर गाजा सर यदि तबहि जरा यह राजा । २०५१ १४. For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.Page Navigation
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